झारखंड में बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (PLFI) के एरिया कमांडर समेत नौ लोगों को अदालत ने बरी कर दिया।
अपर न्यायायुक्त शैलेंद्र कुमार की अदालत ने सुनवाई के दौरान पाया कि इन आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। अदालत ने साक्ष्यों की कमी के आधार पर सभी आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया।
PLFI News: क्या था पूरा मामला?
पीएलएफआई झारखंड में सक्रिय एक उग्रवादी संगठन है, जो राज्य में कई आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहा है। पुलिस के अनुसार, इन आरोपियों पर जबरन वसूली, धमकी, अवैध गतिविधियों और संगठन के लिए नए सदस्यों की भर्ती करने जैसे गंभीर आरोप थे। मामला झारखंड के विभिन्न इलाकों में उग्रवादी घटनाओं से जुड़ा था, जिसमें कई अपराध दर्ज किए गए थे।
पुलिस ने गुप्त सूचना के आधार पर एक अभियान चलाकर इन आरोपियों को गिरफ्तार किया था। जांच के दौरान, आरोपियों के खिलाफ कई गवाह और साक्ष्य जुटाने की कोशिश की गई, लेकिन अदालत में प्रस्तुत किए गए साक्ष्य आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं पाए गए।
अदालत का फैसला
अपर न्यायायुक्त शैलेंद्र कुमार की अदालत ने बुधवार को इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त सबूत प्रस्तुत नहीं कर पाया। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति को केवल संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। सबूतों की कमी के चलते अदालत ने सभी नौ आरोपियों को बरी कर दिया।
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आरोपियों और परिजनों की प्रतिक्रिया
अदालत के इस फैसले के बाद आरोपियों और उनके परिजनों ने राहत की सांस ली। उनका कहना है कि उन्हें झूठे मामलों में फंसाया गया था और अब न्याय मिल गया है। कुछ परिजनों ने कहा कि उनके परिवार के सदस्य निर्दोष थे और उन्हें गलत तरीके से फंसाया गया था।
पुलिस और प्रशासन की प्रतिक्रिया
इस फैसले के बाद पुलिस और प्रशासन ने कहा कि वे अदालत के आदेश का सम्मान करते हैं, लेकिन इस मामले की दोबारा समीक्षा की जाएगी। पुलिस का कहना है कि यदि जरूरत पड़ी तो वे इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दे सकते हैं।
क्या होगा आगे?
अब सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देगी या फिर नए साक्ष्यों के साथ दोबारा जांच करेगी। इस फैसले से झारखंड में उग्रवादी गतिविधियों को लेकर सुरक्षा एजेंसियों की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं।
यह मामला झारखंड में कानून और न्याय व्यवस्था की जटिलताओं को दर्शाता है। अदालत ने सबूतों के अभाव में नौ लोगों को बरी कर दिया, लेकिन इससे यह सवाल भी उठता है कि क्या पुलिस की जांच और साक्ष्य एकत्र करने की प्रक्रिया में कोई खामी थी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे इस मामले में क्या कानूनी कदम उठाए जाते हैं।