पटना/रांची: Bihar Chunav: झारखंड में सत्तारूढ़ दल झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) अब बिहार की राजनीति में भी अपना असर छोड़ने को तैयार नजर आ रहा है।
बिहार विधानसभा चुनाव में अब तक सहयोगी दलों से अपेक्षित तवज्जो न मिलने से खफा झामुमो ने संकेत दिए हैं कि वह महागठबंधन से अलग होकर सीमावर्ती सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकता है।
सूत्रों के मुताबिक, झामुमो को अप्रैल में हुई महागठबंधन की तीन बैठकों में आमंत्रित नहीं किया गया और न ही 21 सदस्यीय समन्वय समिति में उसे स्थान मिला। यही वजह है कि पार्टी में असंतोष और अलग राह अपनाने की भावना प्रबल हो रही है।
Bihar Chunav: हेमंत की नाराज़गी की वजह
झामुमो नेताओं का कहना है कि जब झारखंड विधानसभा चुनाव हुए थे, तब उन्होंने राजद को उदारता दिखाते हुए छह सीटें दी थीं, और सरकार बनने पर एक मंत्री पद भी। अब जब बिहार चुनाव का समय है, तो राजद नेतृत्व झामुमो को वह सम्मान नहीं दे रहा जिसकी वह अपेक्षा कर रहा था।
एक वरिष्ठ झामुमो नेता ने कहा, “हमने गठबंधन धर्म निभाया, लेकिन अब तक बिहार चुनाव में हमारे लिए कोई स्थान तय नहीं किया गया है। अगर ऐसा ही रहा, तो हम 12 से 15 सीमावर्ती सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करेंगे।”
यह भी पढ़े: एमपीएल में जल्द लगेंगे 800 मेगावाट के दो नए यूनिट, विस्थापितों को मिलेगा स्थायी रोजगार: विधायक अरूप चटर्जी
Bihar Chunav: राजनीतिक विस्तार की योजना
झामुमो ने हाल ही में हुए अपने महाधिवेशन में खुद को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में विस्तार देने का प्रस्ताव पारित किया है। इसके तहत पार्टी अब बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ में भी अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने में जुटी है।
पार्टी के महासचिव और प्रवक्ता विनोद कुमार पांडेय ने कहा, “हम समन्वय बनाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं, लेकिन यदि सम्मानजनक सीटें नहीं मिलीं तो हम अपने बूते चुनाव लड़ेंगे। पार्टी की तैयारी पूरी है।”
बिहार में झामुमो का असर
बिहार में झामुमो का प्रभाव सीमित रहा है, लेकिन झारखंड से सटी सीमावर्ती सीटों पर उसका असर माना जाता है। वर्ष 2010 में झामुमो ने चकाई सीट से जीत दर्ज की थी, जहाँ से सुमित कुमार सिंह विधायक बने थे। हालांकि, वे अब निर्दलीय विधायक हैं और बिहार सरकार में मंत्री भी हैं।
क्या महागठबंधन टूटेगा?
तेजस्वी यादव की अगुवाई में महागठबंधन के समन्वय में लगातार उपेक्षा झामुमो की नाराज़गी का कारण बनी है। अगर झामुमो ने वाकई गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया, तो यह महागठबंधन के लिए एक बड़ा राजनीतिक झटका होगा, विशेषकर सीमावर्ती इलाकों में जहाँ पिछड़ी जातियों और आदिवासी वोटरों पर झामुमो का प्रभाव है।