बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो Mayawati ने स्वतंत्रता दिवस की 78वीं वर्षगांठ पर PM Modi के भाषण पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है.
लोगों के ‘अच्छे दिन’ आखिर कब आएंगे?- Mayawati
उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा देश की मौजूदा समस्याओं जैसे गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई और पिछड़ेपन पर समाधान न देने को लेकर सवाल उठाए हैं. मायावती ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने इन ज्वलन्त राष्ट्रीय समस्याओं से जूझ रहे सवा सौ करोड़ लोगों में कोई नई उम्मीद नहीं जगाई. उन्होंने पूछा “लोगों के ‘अच्छे दिन’ आखिर कब आएंगे?”
सरकार को संविधान की मंशा के अनुसार सेक्युलरिज्म का पालन करना चाहिए
मायावती ने प्रधानमंत्री द्वारा देश में समान नागरिक संहिता की जरूरत पर दिए गए बयान को भी आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कि बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा स्थापित संविधान में सभी धर्मों का एक समान सम्मान और धर्मनिरपेक्षता का जो सिद्धांत है उसे ‘कम्युनल’ कहना बिल्कुल अनुचित है. मायावती ने जोर देकर कहा कि सरकार को संविधान की मंशा के अनुसार सेक्युलरिज्म का पालन करना चाहिए और यही सच्ची देशभक्ति और राजधर्म है.
मायावती की यह प्रतिक्रिया उनके उस दृढ़ संकल्प को दर्शाती है जिसमें वह हमेशा संविधान के मूल्यों और आम जनता के अधिकारों की रक्षा की बात करती रही हैं. उनका यह बयान देश की मौजूदा परिस्थितियों पर एक गंभीर सवाल खड़ा करता है और प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों पर खुला विरोध जताता है.
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लाल किले से दिए गए भाषण पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री का भाषण लंबा-चौड़ा तो था लेकिन इसमें देश के करोड़ों दलितों और आदिवासियों के आरक्षण के हक की रक्षा के मुद्दे पर कोई ठोस बात नहीं की गई.
मायावती ने इस भाषण को इस मामले में अत्यन्त निराशाजनक करार दिया खासकर जब सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त 2024 को एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है जिसके बाद यह मुद्दा और भी ज्वलंत हो गया है.
मायावती ने यह भी याद दिलाया कि भाजपा सांसदों को प्रधानमंत्री ने जो आश्वासन दिया था वह उनके भाषण में कहीं नहीं दिखा. उन्होंने कहा कि देश के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्गों के लोगों को ऐसा ही जातिवादी रवैया अपनाने की शिकायत कांग्रेस से भी रही है. कांग्रेस ने भी एससी-एसटी के उपवर्गीकरण और उन्हें बांटने के मुद्दे पर भाजपा की तरह ही चुप्पी साध रखी है जो पूरी तरह अनुचित है.
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मायावती का यह बयान स्पष्ट रूप से प्रधानमंत्री और सरकार की दलितों और आदिवासियों के प्रति उदासीनता और उपेक्षा की ओर इशारा करता है. उन्होंने इस मुद्दे को उठाकर एक बार फिर से आरक्षण और सामाजिक न्याय के सवाल को राष्ट्रीय बहस का केंद्र बनाने की कोशिश की है. मायावती ने सरकार से अपील की कि वह इन समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाए और संविधान की भावना का पालन करे.