Bangalore Ghoshna : बेंगलुरु में आयोजित विपक्षी नेताओं और सामाजिक न्याय के पैरोकारों की महत्वपूर्ण बैठक में जातिगत जनगणना को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की मांग ने एक बार फिर राजनीतिक बहस को गर्म कर दिया है।
इस बैठक में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नेतृत्व में बेंगलुरु घोषणा को पारित किया गया, जिसमें केंद्र सरकार से तेलंगाना के जाति सर्वे मॉडल के आधार पर राष्ट्रीय जातिगत गणना की मांग की गई।
Bangalore Ghoshna : AHINDA कार्ड- कांग्रेस की सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश
कांग्रेस ने इस बैठक के जरिए अपने पारंपरिक वोट बैंक AHINDA (अल्पसंख्यक, हिन्दू पिछड़े वर्ग, दलित) को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया। सिद्धारमैया ने इस मंच पर कहा कि “जब तक सामाजिक और आर्थिक असमानता बनी रहेगी, तब तक समान अवसर की कल्पना अधूरी है। जातिगत आंकड़े ही सटीक नीतियों की आधारशिला रख सकते हैं।” उन्होंने जातिगत आंकड़ों को सार्वजनिक किए जाने पर बल देते हुए कहा कि इससे ही समावेशी विकास सुनिश्चित किया जा सकता है।
Bangalore Ghoshna : PDA की राह पर समाजवादी पार्टी, कांग्रेस से सामंजस्य की कोशिश
वहीं समाजवादी पार्टी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के फॉर्मूले को आगे बढ़ाया जा रहा है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव लगातार इस बात को दोहरा रहे हैं कि जब तक पिछड़ों की वास्तविक संख्या सामने नहीं आती, तब तक उनके लिए योजनाएं सिर्फ दिखावा हैं। इस बैठक में सपा प्रतिनिधियों की उपस्थिति ने यह संकेत भी दिया कि विपक्षी दल जातिगत जनगणना के एजेंडे पर एकमत हो सकते हैं।
Bangalore Ghoshna: क्या बोले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया?
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने स्पष्ट रूप से कहा कि “जातिगत जनगणना केवल आंकड़ों की प्रक्रिया नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय का आधार है। बिना आंकड़ों के कोई भी आरक्षण नीति या कल्याण योजना सही तरीके से नहीं बन सकती। देश के वास्तविक सामाजिक ढांचे को जानने का यही एकमात्र रास्ता है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि केंद्र सरकार को अब जातिगत जनगणना से पीछे नहीं हटना चाहिए, क्योंकि यह संविधान की आत्मा और बाबा साहेब अंबेडकर के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
राजनीतिक मायने- विपक्षी एकता या रणनीतिक ध्रुवीकरण?
जहां कांग्रेस AHINDA कार्ड के जरिए दक्षिण भारत में अपनी पकड़ मजबूत करने का प्रयास कर रही है, वहीं सपा और अन्य क्षेत्रीय दल PDA फॉर्मूले के जरिए उत्तर भारत में पिछड़े वर्गों को लामबंद करने की रणनीति बना रहे हैं। जातिगत जनगणना इस समय वह साझा बिंदु बन चुका है, जिससे विपक्ष सामाजिक न्याय की राजनीति को नई धार देने की कोशिश कर रहा है।
सामाजिक न्याय की ओर बड़ा कदम या चुनावी रणनीति?
जातिगत जनगणना पर बनी सहमति और बेंगलुरु घोषणा यह संकेत देती है कि 2024 लोकसभा चुनावों से पहले विपक्ष सामाजिक न्याय को चुनावी मुद्दा बनाकर जनता को एक नई दिशा देने की रणनीति पर काम कर रहा है। अब देखना यह होगा कि केंद्र सरकार इस मांग को किस नजर से देखती है समाज सुधार के अवसर के तौर पर या एक राजनीतिक चुनौती के रूप में।