रांची – Champai Soren: भाजपा, झाविमो और जेकेएलएम से चार बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके सूर्य नारायण हांसदा की पुलिस मुठभेड़ में मौत पर अब सवाल उठ रहे हैं।
चार बार चुनाव लड़ चुके स्व. सूर्या हांसदा की पत्नी ने देवघर में गिरफ्तारी के तुरंत बाद जिस बात की आशंका जताई थी, गोड्डा पहुंचते- पहुंचते वह सच हो गई।
पिछले कुछ समय से, संथाल परगना में, कुछ खास लोगों के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को कुचलने की कोशिशें हो रही हैं।
गोड्डा में स्व.… pic.twitter.com/RLqskN4w3u
— BJP JHARKHAND (@BJP4Jharkhand) August 14, 2025
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता चंपाई सोरेन ने इस एनकाउंटर पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि “जिस बात की आशंका जताई जा रही थी, वही हुआ।” उन्होंने इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की है।
पुलिस की कार्रवाई पर Champai Soren ने खड़े किए ये सवाल
चंपाई सोरेन ने कहा कि सूर्या हांसदा की पत्नी ने देवघर में गिरफ्तारी के तुरंत बाद ही जिस आशंका को व्यक्त किया था, गोड्डा पहुंचते-पहुंचते वह सच हो गई। उन्होंने पुलिस की कहानी पर कई सवाल उठाए हैं:
- क्या पुलिस यह बताएगी कि एक हथकड़ी लगे बीमार व्यक्ति ने पुलिस पर कैसे और कितनी गोलियां चलाईं?
- पुलिस की गोलियां आरोपी के पैरों की जगह सीने पर क्यों लगीं?
- उसे आधी रात को जंगल में क्यों ले जाया गया और सुबह का इंतजार क्यों नहीं किया गया?
- अगर किसी गिरोह ने पुलिस पर हमला किया था, तो उनमें से किसी को गिरफ्तार क्यों नहीं किया जा सका?
- उस गिरोह को कैसे पता चला कि पुलिस सूर्या हांसदा को लेकर वहाँ आने वाली है?
Champai Soren News: आदिवासियों की आवाज को दबाने का आरोप
चंपाई सोरेन ने आरोप लगाया कि संथाल परगना में आदिवासियों के पक्ष में और खनन माफिया के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबाने की कोशिश हो रही है। उन्होंने कहा कि यह घटना इस बात का संकेत है कि जो भी सरकार के खिलाफ आवाज उठाएगा, उसे सरकारी तंत्र की मदद से खामोश कर दिया जाएगा। उन्होंने इस एनकाउंटर को न्याय की मूल अवधारणा के खिलाफ बताया और कहा कि इस प्रवृत्ति से झारखंड में राजनीतिक कारणों से न्याय कमजोर हो रहा है।
सीबीआई जांच की मांग
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि इस पूरे मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए, तभी सच सामने आएगा और पीड़ित परिवार को न्याय मिल पाएगा। उन्होंने बोकारो का उदाहरण देते हुए कहा कि सरकार एक विशेष समुदाय के अपराधियों की मदद करती है, जबकि आदिवासियों की आवाज उठाने वालों को खामोश कर दिया जाता है।