Arvind Kejriwal संग Hemant Soren चलेंगे एक ही ‘दांव’

झारखंड के CM Arvind Kejriwal और दिल्ली के CM Hemant Soren दोनों हाल ही में जेल से जमानत पर बाहर आए हैं, और अब दोनों नेता अपनी जमानत को चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की तैयारी में हैं।

झारखंड में हेमंत सोरेन जमीन घोटाले के आरोपों में पांच महीने जेल में रहे, वहीं अरविंद केजरीवाल शराब घोटाले में करीब छह महीने जेल में थे। दोनों मामलों में अदालत की टिप्पणियां अब इन नेताओं के लिए एक बड़ी राजनीतिक चाल बनने जा रही हैं।

हेमंत सोरेन को झारखंड हाईकोर्ट ने जमानत देते वक्त कहा था कि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं, जिससे यह साफ होता है कि वे कथित अपराध में शामिल नहीं थे। इसी तरह, सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल को जमानत देते समय सीबीआई पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘सीबीआई को सरकारी तोता नहीं होना चाहिए।’ इन टिप्पणियों का विपक्षी दल, खासकर ‘इंडिया’ ब्लॉक, चुनाव में भरपूर फायदा उठाने की कोशिश करेगा।

सरकारी जांच एजेंसियों पर उठ रहे सवाल

हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल जैसे नेता लंबे समय से सरकारी जांच एजेंसियों की कार्रवाई पर सवाल उठा रहे हैं। दोनों नेताओं का कहना है कि केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर विपक्षी नेताओं को परेशान कर रही है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल समेत कई विपक्षी नेता जांच एजेंसियों के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटा चुके हैं। अब इन नेताओं के पास यह कहने का एक ठोस आधार मिल गया है कि वे बेवजह निशाना बनाए जा रहे हैं।

इंडिया ब्लॉक की रणनीति

झारखंड में आने वाले विधानसभा चुनाव और दिल्ली में संभावित 2025 के चुनाव को ध्यान में रखते हुए, हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल दोनों अपने-अपने राज्य में भाजपा को चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं। झारखंड में जेएमएम के साथ कांग्रेस का गठबंधन पहले से ही है, और नैतिक रूप से आम आदमी पार्टी का समर्थन भी जेएमएम को मिल सकता है। यह भी संभावना है कि अरविंद केजरीवाल झारखंड के चुनाव प्रचार में हेमंत सोरेन के लिए सभाएं करें, जिससे भाजपा को कड़ी टक्कर दी जा सके।

Hemant Soren का आदिवासियत का मुद्दा

हेमंत सोरेन ने अपनी जमानत और जेल जाने के अनुभव को आदिवासियत से जोड़कर प्रस्तुत किया है। वे लगातार कहते आ रहे हैं कि भाजपा उन्हें आदिवासी मुख्यमंत्री होने के नाते अपदस्थ करने की कोशिश करती रही है। उनका यह मुद्दा चुनाव में खास तौर पर आदिवासी समुदाय के बीच में असर डाल सकता है, और इसका फायदा सोरेन को मिलना तय माना जा रहा है।

दोनों नेताओं का चुनावी दांव

अब जब हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल दोनों ही भुक्तभोगी के रूप में सामने हैं, तो वे लोगों के सामने खुलकर यह बताएंगे कि कैसे उन्हें बेवजह जेल में डाला गया और परेशान किया गया। दोनों नेताओं का यह दांव भाजपा के खिलाफ ‘इंडिया’ ब्लॉक के एजेंडे को मजबूती देगा और जनता के बीच यह संदेश जाएगा कि केंद्र सरकार विपक्षी नेताओं को दबाने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर रही है।

इस राजनीतिक खेल में भाजपा को ‘पटखनी’ देने की रणनीति तैयार है, और आने वाले चुनाव में यह देखने लायक होगा कि कैसे इन मुद्दों को जनता के बीच भुनाया जाता है।

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