Bihar की राजनीति में एक बार फिर से नीतीश कुमार और लालू यादव के गठबंधन को लेकर बयानबाजी शुरू हो गई है। जेडीयू और आरजेडी, दोनों ही पार्टियों के बीच यह विवाद है कि गठबंधन के लिए पहल किसने की थी।
हाल ही में नीतीश कुमार के एक बयान ने इस विवाद को और तूल दे दिया। उन्होंने कहा, “मैंने दो बार आरजेडी का कल्याण कर दिया है। अब उसका कल्याण नहीं करूँगा।” इस पर आरजेडी ने भी पलटवार करते हुए कहा कि गठबंधन के लिए पहले नीतीश ही उनके पास आए थे। आइए जानते हैं, इन दोनों पक्षों के दावों की हकीकत क्या है।
Bihar Politics: 2015 का गठबंधन: लालू की पहल या नीतीश की?
2013 में जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया, तब नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़ लिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बिहार की 40 में से 31 सीटों पर जीत मिली, जबकि जेडीयू को भारी नुकसान हुआ। इस दौरान नीतीश और लालू के अलग-अलग चुनाव लड़ने से वोटों का बंटवारा हुआ और इसका फायदा बीजेपी को मिला।
लालू यादव ने एक इंटरव्यू में कहा था कि “वोटों के बंटवारे की वजह से बीजेपी जीती। इसके बाद मैंने नीतीश को फोन किया और गठबंधन का प्रस्ताव रखा।” कहा जाता है कि इसी बातचीत के बाद नीतीश ने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री पद से हटने को कहा और खुद मुख्यमंत्री बने। बाद में, दिल्ली में सपा प्रमुख मुलायम सिंह के घर पर दोनों नेताओं की मुलाकात हुई, जहां महागठबंधन की नींव रखी गई, जिसमें कांग्रेस भी शामिल हुई।
Bihar News: 2022 का गठबंधन: इस बार किसने पहल की?
2015 का गठबंधन 2017 में टूट गया, जब नीतीश कुमार फिर से एनडीए में चले गए। लेकिन 2022 में नीतीश ने बीजेपी से नाता तोड़कर फिर से लालू यादव का साथ लिया। इस बार गठबंधन की पहल खुद नीतीश ने की थी। नीतीश ने आरसीपी सिंह को किनारे कर अपनी पार्टी में बदलाव किए और बीजेपी से अलग होने का मन बना लिया।
अगस्त 2022 में आरसीपी सिंह के जेडीयू छोड़ने के बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और सीधे राबड़ी देवी के आवास पहुंचे, जहां तेजस्वी यादव और लालू परिवार ने उनका स्वागत किया। इसके बाद, नीतीश ने फिर से आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाई और बीजेपी पर अपनी पार्टी को खत्म करने की साजिश का आरोप लगाया।
दोनों ही पार्टियां अपने-अपने दावे पेश कर रही हैं। 2015 में लालू यादव की पहल से गठबंधन हुआ था, जबकि 2022 में नीतीश कुमार ने खुद पहल कर लालू यादव का साथ लिया।
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राजनीति में इस तरह के दावे और प्रतिदावे आम हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि दोनों ही नेता समय-समय पर एक-दूसरे के साथ और खिलाफ खड़े हुए हैं, और यह गठबंधन भी उसी राजनीति का एक हिस्सा है।