Patna: Sharjeel Imam, जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) का पूर्व छात्र और शोधार्थी रहे हैं, जो CAA (नागरिकता संशोधन कानून) के खिलाफ हुए आंदोलनों में अपनी भूमिका के चलते सुर्खियों में आए।
बिहार के जहानाबाद जिले से ताल्लुक रखने वाले शरजील की शिक्षा दीक्षा भारतीय विज्ञान संस्थान (IIT) मुंबई और फिर जेएनयू से हुई। छात्रों के बीच वे एक बौद्धिक और तेजतर्रार वक्ता के रूप में जाने जाते रहे हैं।
Sharjeel Imam News: विवादों में घिरा नाम
शरजील इमाम का नाम सबसे पहले राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में तब आया जब उन्होंने CAA के खिलाफ आंदोलन के दौरान कथित रूप से ‘भारत से असम को काटने’ जैसे बयान दिए। इसके बाद उन पर देशद्रोह और UAPA (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) जैसे गंभीर धाराओं में केस दर्ज हुआ। दिल्ली पुलिस और अन्य राज्यों की एजेंसियों ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा, जहां वे आज भी न्यायिक हिरासत में हैं।
Sharjeel Imam News: चुनावी ऐलान और राजनीतिक हलचल
अब शरजील इमाम ने किशनगंज विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है, जिसकी पुष्टि उनके भाई मुजम्मिल इमाम ने की। मुजम्मिल के अनुसार, यह निर्णय शरजील ने जेल में रहते हुए लिया और इसके पीछे उनका उद्देश्य ‘संविधान और लोकतंत्र की रक्षा’ बताई जा रही है। इस खबर ने बिहार की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। किशनगंज मुस्लिम बहुल इलाका है, जहां शरजील के समर्थन में कुछ तबकों में उत्साह देखा जा रहा है।
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शरजील की उम्मीदवारी को लेकर समाज में मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। एक ओर कुछ लोग इसे लोकतंत्र की ताकत बताते हैं कि एक विचारधारा से जुड़े युवा को भी चुनाव लड़ने का अधिकार है, वहीं दूसरी ओर विरोधी इसे कानून का मज़ाक बता रहे हैं। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर शरजील चुनाव लड़ते हैं तो यह न सिर्फ एक कानूनी परीक्षा होगी, बल्कि एक सामाजिक विमर्श भी जन्म देगा।
क्या कहता है कानून?
भारतीय संविधान के अनुसार, जब तक कोई व्यक्ति दोषी करार नहीं दिया जाता, तब तक उसे चुनाव लड़ने का अधिकार प्राप्त होता है। चूंकि शरजील इमाम पर अब तक केवल आरोप तय हुए हैं और कोर्ट से सजा नहीं हुई है, ऐसे में वे चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य नहीं हैं। हालांकि, UAPA जैसे गंभीर कानून के तहत जेल में रह रहे व्यक्ति का चुनाव लड़ना राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत जटिल मामला है।
लोकतंत्र की परीक्षा या राजनीतिक स्टंट?
शरजील इमाम की चुनावी दावेदारी को जहां कुछ लोग लोकतांत्रिक अधिकार मानते हैं, वहीं कुछ इसे उकसावे की राजनीति करार दे रहे हैं। आगामी चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता का समर्थन किस ओर झुकता है और क्या शरजील जेल की दीवारों के पार से भी एक सशक्त राजनीतिक संदेश देने में सफल हो पाएंगे।