सिंधिया और Rahul Gandhi का सामना: पुराने दोस्त, नई राहें

संविधान दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम में Rahul Gandhi और ज्योतिरादित्य सिंधिया की मुलाकात ने सबका ध्यान खींचा।

लंबे समय बाद दोनों नेता साथ नजर आए, और इस दौरान उनकी हाथ मिलाते हुए तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं। एक समय में राहुल गांधी के सबसे करीबी माने जाने वाले सिंधिया अब भाजपा में केंद्रीय मंत्री हैं। ऐसे में दोनों का इस तरह मिलना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया।

Rahul Gandhi: मुलाकात का माहौल और पुरानी यादें

इस मुलाकात के दौरान राहुल गांधी और सिंधिया ने गर्मजोशी से हाथ मिलाया। यह दृश्य इतना खास था कि आसपास खड़े सांसद भी उनकी ओर देखने लगे। राहुल गांधी के साथ कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी थे। मुलाकात ने कई लोगों को उनकी पुरानी दोस्ती की याद दिला दी। सोशल मीडिया पर तस्वीरें वायरल होने लगीं, और कई यूजर्स ने इसे “पुराने दोस्तों का शिष्टाचार” बताया।

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कभी साथ, अब अलग राहें

Rahul Gandhi और ज्योतिरादित्य सिंधिया की दोस्ती कांग्रेस के दिनों में काफी चर्चा में रहती थी। सिंधिया को राहुल के सबसे करीबी सहयोगियों में गिना जाता था। लेकिन 2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद परिस्थितियां बदलने लगीं। कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की, लेकिन सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाने के बजाय कमलनाथ को चुना गया।

कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के साथ मतभेदों के कारण सिंधिया ने 2020 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। उनके साथ 22 विधायकों के भी इस्तीफे ने कमलनाथ सरकार को गिरा दिया। इसके बाद सिंधिया भाजपा में शामिल हो गए और केंद्रीय मंत्री बने।

तस्वीरें और राजनीति

सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरों के साथ कई टिप्पणियां भी आईं। कुछ लोगों ने इसे “राजनीति से परे शिष्टाचार” कहा, जबकि कुछ ने इसे राहुल और सिंधिया के रिश्तों में जमी बर्फ पिघलने का संकेत माना। हालांकि, यह मुलाकात महज औपचारिक थी। संसद भवन में अक्सर नेता इस तरह से मिलते हैं।

वर्तमान और भविष्य

यह मुलाकात ऐसे समय में हुई जब राहुल गांधी हाल ही में ब्रिटिश शासन और भारतीय राजघरानों पर लिखे अपने एक लेख को लेकर चर्चा में हैं। दूसरी ओर, सिंधिया भाजपा में अपनी जगह मजबूत कर रहे हैं।

दोनों नेताओं की इस मुलाकात से यह स्पष्ट है कि राजनीति में मतभेद के बावजूद पुराने रिश्ते पूरी तरह खत्म नहीं होते। यह शिष्टाचार मुलाकात ने पुराने दिनों की दोस्ती की झलक जरूर दिखाई, लेकिन यह भविष्य की राजनीति को कितना प्रभावित करेगी, यह देखना बाकी है।

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