गुजरात सरकार में लंबे समय तक शीर्ष अधिकारी रहे कुनियिल कैलाशनाथन अब रिटायर हो गए हैं. उन्हें PM Modi के करीबी अफसरों में शुमार किया जाता है.
चर्चा है कि वह अब राज्यपाल भी बनाए जा सकते हैं. केके ने गुजरात सरकार में 45 सालों तक काम किया और वह नरेंद्र मोदी सरकार के दौर से ही एक पावर सेंटर के तौर पर उभरे थे. इसके बाद जब नरेंद्र मोदी ने पीएम के तौर पर कमान संभाली तब भी वह गुजरात में ही रहे. कहा जाता था कि पीएम मोदी को उनके जरिए ही गुजरात की रिपोर्ट्स मिलती रहीं और वह उनके आंख और कान के तौर पर काम करते रहे.
उन्हें इन सालों में सुपर सीएम जैसी उपाधि भी मिली हुई थी. अब जब वह रिटायर हुए हैं तो कहा जा रहा है कि उन्हें राज्यपाल की भूमिका भी मिल सकती है. 72 साल के कैलाशनाथन के अगले कदम पर फिलहाल सबकी नजर है.
गुजरात के शीर्ष सूत्रों का कहना है कि केके की विदाई का असर दिख सकता है. केरल के रहने वाले केके ने मद्रास यूनिवर्सिटी से केमिस्ट्री में पोस्ट ग्रैजुएशन किया था. इसके बाद आईएएस बने और उनका कैडर गुजरात था. उन्हें गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले में डीएम के तौर पर पहली पोस्टिंग मिली थी. इसके बाद से वह लगातार गुजरात में ही बने रहे. उन्होंने कई विभागों में सेवाएं दीं और आगे बढ़ते-बढ़ते प्रधान सचिव तक बने.
वह राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के तौर पर भी 1994-95 में काम कर चुके हैं. अहमदाबाद में पानी की किल्लत दूर करने के लिए रास्का प्रोजेक्ट का श्रेय भी उन्हें दिया जाता है.
लगातार 11 वर्षों तक मिलता रहा केके को सेवा विस्तार
कुनियिल कैलाशनाथन को 2006 में मुख्यमंत्री कार्यालय में जिम्मेदारी मिली थी. इसके बाद उन्होंने लगातार 18 साल तक यहां काम किया और अब विदाई ली है. 2013 में उन्हें राज्य की नरेंद्र मोदी सरकार ने अतिरिक्त मुख्य सचिव बनाया था. पिछले 11 सालों से उन्हें लगातार सेवा विस्तार मिल रहा था. नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने तब भी कैलाशनाथन उनके करीबी बने रहे।.
कैलाशनाथन पीएम मोदी की इन योजनाओं के रहे सूत्रधार
मोदी के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स जैसे GIFT सिटी, नर्मदा परियोजना और गांधी आश्रम के पुनर्विकास जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाओं को कैलाशनाथन ने ही साकार किया था. नरेंद्र मोदी के दिल्ली पहुंचने के बाद गुजरात ने अब तक तीन मुख्यमंत्री देखे लेकिन कैलाशनाथन का कद कभी कम नहीं हुआ.
केके को लेकर फिलहाल चर्चा है कि उन्हें केंद्र में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल सकती है या फिर उन्हें किसी राज्य का राज्यपाल अथवा किसी केंद्र शासित प्रदेश का उपराज्यपाल भी बनाया जा सकता है.
कैलाशनाथन की विदाई के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि उनकी जगह कौन लेता है और उनके बाद की नीतियों और परियोजनाओं का क्या भविष्य होता है. उनके योगदान और अनुभव को देखते हुए यह साफ है कि उनकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो सकती है.