झारखंड में विधानसभा चुनावों की तैयारी जोरों पर है, और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की रणनीति में लगातार बदलाव देखे जा रहे हैं।
चंपाई सोरेन ने पार्टी छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी, कल्पना सोरेन के सरायकेला से चुनाव लड़ने की अटकलों ने राजनीतिक माहौल को और भी गर्मा दिया है। यह कदम JMM के लिए कितना लाभकारी हो सकता है, खासकर जब पूर्व मुख्यमंत्री और JMM के कद्दावर नेता चंपाई सोरेन ने पार्टी छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया है, इस पर सबकी नजरें टिकी हैं।
बीजेपी में जाने के बाद कांग्रेस और JMM के बीच यह पहली गंभीर बातचीत
हाल ही में हेमंत सोरेन दिल्ली में नये झारखंड भवन के उद्घाटन के लिए पहुंचे थे। इस यात्रा के दौरान उन्होंने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात की। यह मुलाकात इसलिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि चंपाई सोरेन के बीजेपी में जाने के बाद कांग्रेस और JMM के बीच यह पहली गंभीर बातचीत थी।
सूत्रों के मुताबिक, इस मुलाकात में हेमंत सोरेन ने कांग्रेस नेतृत्व को यह भरोसा दिलाया कि चंपाई के जाने से महागठबंधन की चुनावी संभावनाओं पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि पार्टी का कैडर पूरी तरह से JMM के साथ खड़ा है, और आने वाले विधानसभा चुनावों में गठबंधन मजबूती से चुनाव लड़ेगा।
JMM ने सीधे चंपाई को निशाना बनाने से बचने की रणनीति अपनाई है
चंपाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने से JMM के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है, खासकर सरायकेला में, जहां से चंपाई चुनाव लड़ते आए हैं। हालांकि JMM ने सीधे चंपाई को निशाना बनाने से बचने की रणनीति अपनाई है, लेकिन साथ ही, सरायकेला में एक मजबूत उम्मीदवार उतारने की योजना भी बनाई जा रही है।
2019 में भले ही चंपाई ने यहां से 15,000 से अधिक वोटों से जीत हासिल की थी
यहां पर हेमंत सोरेन की पत्नी, कल्पना सोरेन को मैदान में उतारे जाने की अटकलें जोरों पर हैं। अगर ऐसा होता है, तो JMM की यह रणनीति चंपाई को उन्हीं के गढ़ में घेरने का एक मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकती है। 2019 में भले ही चंपाई ने यहां से 15,000 से अधिक वोटों से जीत हासिल की थी, लेकिन 2014 में उनकी जीत का मार्जिन महज 1,115 वोटों का था, जो उनके लिए एक कमजोर कड़ी साबित हो सकता है।
JMM की योजना यह भी है कि चंपाई सोरेन के बीजेपी में जाने का दोष बीजेपी पर डालकर इसे आदिवासी समाज को बांटने की साजिश के रूप में पेश किया जाए। इस मुद्दे को उठाकर JMM और कांग्रेस, दोनों ही दल आदिवासी वोटरों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश करेंगे। वहीं, JMM की ओर से चंपाई पर सीधा निशाना न साधने की नीति अपनाई गई है, ताकि कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
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झारखंड में महागठबंधन के चुनावी समीकरणों पर इस घटनाक्रम का क्या असर होगा, यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा। लेकिन इतना जरूर है कि हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन को सरायकेला से उम्मीदवार बनाने की चर्चा ने राजनीतिक सरगर्मियों को बढ़ा दिया है। आने वाले विधानसभा चुनावों में JMM की रणनीति कितनी कारगर साबित होगी, यह देखना दिलचस्प होगा।