Lobin Hembrom: राजनीति में रिश्तों की स्थिरता कम ही देखने को मिलती है। झारखंड की राजनीति में यह एक बार फिर सामने आया है, जब पूर्व विधायक लोबिन हेंब्रम, जो 2019 में झामुमो से भाजपा में शामिल हुए थे, अब झामुमो के प्रति अपनी नजदीकियां बढ़ा रहे हैं।
Lobin Hembrom के झामुमो के साथ पुराने रिश्ते
लोबिन हेंब्रम 2019 में झामुमो के विधायक थे लेकिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ मुखर रहे। उन्होंने पार्टी में पंकज मिश्रा के प्रभाव का खुलकर विरोध किया। मिश्रा को सीएम का करीबी माना जाता था, जिससे लोबिन का असंतोष और बढ़ा। यह असंतोष इतना बढ़ा कि लोबिन ने 2019 के लोकसभा चुनाव में झामुमो के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ा।
भाजपा में शामिल होने के बाद असफलता
विधानसभा चुनाव से पहले लोबिन ने भाजपा का दामन थामा और बोरियो से टिकट भी मिला। लेकिन वह चुनाव में हार गए। झामुमो ने मामूली कार्यकर्ता धनंजय सोरेन पर दांव लगाया, जिसने बाजी मार ली। चुनावी हार के बाद लोबिन हेंब्रम को झामुमो की ताकत का एहसास हुआ।
दिशोम गुरु से मुलाकात
हाल ही में लोबिन ने झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के 81वें जन्मदिन पर उनके आवास जाकर उन्हें बधाई दी। उन्होंने इसे राजनीतिक शिष्टाचार बताया लेकिन यह भी कहा कि शिबू सोरेन उनके राजनीतिक गुरु हैं और उनसे कभी मनभेद नहीं हो सकता। उन्होंने दावा किया कि उनके मार्गदर्शन से ही वह अपने राजनीतिक मुकाम तक पहुंचे।
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भाजपा और झामुमो के बीच Lobin Hembrom की स्थिति
लोबिन हेंब्रम का कहना है कि उन्होंने भाजपा की सदस्यता लेने के बाद रघुवर दास से भी मुलाकात की और पार्टी को मजबूत करने पर चर्चा की। हालांकि, झामुमो के प्रति उनके बढ़ते झुकाव से भाजपा के लिए नई चुनौती खड़ी हो सकती है।
क्या भाजपा को नुकसान होगा?
लोबिन हेंब्रम का झामुमो की ओर झुकाव संकेत देता है कि वह अपने राजनीतिक भविष्य के लिए संभावनाएं टटोल रहे हैं। यदि वह झामुमो में लौटते हैं, तो यह भाजपा के लिए झारखंड में एक बड़ा झटका हो सकता है, खासकर संथाल क्षेत्र में जहां लोबिन का जनाधार है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लोबिन का यह कदम सिर्फ व्यक्तिगत संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके राजनीतिक पुनर्वास की दिशा में भी एक संकेत है। अब देखना होगा कि भाजपा इस स्थिति को कैसे संभालती है और झामुमो इस मौके का कितना फायदा उठाता है।