Mahavir Nayak Padma Shri: झारखंड की समृद्ध लोकसंस्कृति और नागपुरी भाषा के संरक्षक, महावीर नायक, अपने गीतों और योगदान के लिए 82 वर्ष की उम्र में पद्मश्री सम्मान से नवाजे जाएंगे। उनकी यह उपलब्धि न केवल उनके परिवार और क्षेत्रीय कला के लिए गर्व का विषय है, बल्कि नागपुरी भाषा और संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का प्रमाण भी है।
कौन हैं Mahavir Nayak?
रांची के कांके क्षेत्र के उरुगुटु गांव में 24 नवंबर 1942 को जन्मे महावीर नायक ने अपने जीवन को नागपुरी गीत-संगीत के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने पांच हजार से अधिक गीतों का संकलन किया और खुद 300 से अधिक गीतों की रचना की। उनका गीत-संगीत से जुड़ाव पारिवारिक विरासत का हिस्सा था, उनके पिताजी और दादाजी भी क्षेत्रीय कला के जाने-माने कलाकार थे।
Mahavir Nayak की प्रारंभिक जीवन और करियर
1959 से 1961 तक महावीर नायक ने शिक्षक के तौर पर काम किया। इसके बाद उन्होंने रांची स्थित हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन (HEC) में नौकरी की और 2001 में सेवानिवृत्त हुए। लेकिन नौकरी के दौरान भी उनका जुड़ाव गीत-संगीत से बना रहा।
उपलब्धियां और योगदान
- 1980 के दशक से आकाशवाणी और दूरदर्शन से जुड़े रहे।
- 1993 में उनके गीतों का एक संग्रह ‘नागपुरी गीत दर्पण’ प्रकाशित हुआ।
- 1992 में वह नागपुरी कला दल के साथ ताइवान गए, जहां उन्होंने झारखंड की संस्कृति का प्रदर्शन किया।
- उन्होंने रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग सहित 20 से अधिक सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी निभाई।
- 2023 में उन्हें भारत सरकार की संगीत नाटक अकादमी द्वारा अमृत अवार्ड से सम्मानित किया गया।
‘भिनसरिया कर राजा’ और नागपुरी संस्कृति में योगदान
महावीर नायक नागपुरी भाषा में ‘भिनसरिया कर राजा’ के रूप में प्रसिद्ध हैं। यह एक राग है जो सुबह के समय गाया जाता है। उन्होंने अपने गीतों और प्रदर्शन से ग्रामीण समाज और अखरा मंचों पर अमिट छाप छोड़ी।
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पद्मश्री पर महावीर नायक की प्रतिक्रिया
महावीर नायक ने इस सम्मान को अपने दिवंगत पिताजी, दादाजी और नागपुरी संस्कृति के सभी कलाकारों को समर्पित किया है। उन्होंने कहा, “यह मेरा नहीं, बल्कि हमारी क्षेत्रीय भाषा और मधुर संस्कृति का सम्मान है।”
विरासत और प्रेरणा
महावीर नायक का जीवन और योगदान उन सभी कलाकारों के लिए प्रेरणा है, जो अपनी क्षेत्रीय भाषा और संस्कृति को संरक्षित और बढ़ावा देने का सपना देखते हैं। उनका यह सम्मान झारखंड और नागपुरी संस्कृति को एक नई पहचान और सम्मान दिलाने में सहायक होगा।