फांसी की मांग पर अडिग Mamata Banerjee, हाई कोर्ट जाने की तैयारी

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री Mamata Banerjee ने कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में प्रशिक्षु चिकित्सक से बलात्कार और हत्या के दोषी संजय रॉय को फांसी की सजा न मिलने पर निराशा जाहिर की है।

सियालदह की निचली अदालत ने दोषी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। मुख्यमंत्री ने इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट जाने की बात कही है।

Mamata Banerjee की सीबीआई जांच पर नाराजगी

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह मामला कोलकाता पुलिस से जबरन लेकर सीबीआई को सौंपा गया, जिसके कारण दोषी को फांसी की सजा दिलाने में नाकामी हुई। उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर जांच राज्य पुलिस के हाथ में रहती, तो दोषी को मौत की सजा दिलाई जा सकती थी।

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उन्होंने कलकत्ता हाई कोर्ट के 13 अगस्त 2024 के उस फैसले पर सवाल उठाया, जिसमें यह मामला कोलकाता पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंपा गया था।

अदालत का फैसला और “दुर्लभतम से दुर्लभतम” अपराध पर चर्चा

सियालदह के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश अनिर्बान दास ने कहा कि यह मामला “दुर्लभतम से दुर्लभतम” श्रेणी में नहीं आता, जिससे मृत्युदंड दिया जा सके। अदालत ने दोषी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जो इस अपराध की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री और उनके दल को अस्वीकार्य लगी।

राज्य पुलिस की पिछली सफलताएं

ममता बनर्जी ने स्थानीय पुलिस द्वारा जांच किए गए जयनगर, फरक्का, और गुरल्प के मामलों का हवाला देते हुए कहा कि इन घटनाओं में उनकी पुलिस ने दोषियों को मृत्युदंड सुनिश्चित किया। उन्होंने सवाल उठाया कि सीबीआई ने इस मामले को कैसे संभाला और अदालत में क्या दलीलें दीं।

विरोध प्रदर्शनों के बाद सरकार की सख्त प्रतिक्रिया

इस मामले ने देशभर में व्यापक और लंबे समय तक विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया था। मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसे अपराधियों के लिए सबसे कठोर सजा मिलनी चाहिए।

मुख्यमंत्री Mamata Banerjee का बयान

“हमने पहले दिन से ही मृत्युदंड की मांग की थी। अगर यह सजा सुनाई जाती, तो हमें और पीड़ित परिवार को थोड़ी राहत मिलती। राज्य सरकार अब इस फैसले को चुनौती देने के लिए हाई कोर्ट का रुख करेगी।”

ममता बनर्जी का यह रुख दर्शाता है कि उनकी सरकार न्याय सुनिश्चित करने और महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे पर सख्त है। उन्होंने इस मामले को राजनीतिक और प्रशासनिक दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण बना दिया है, जो न्याय प्रणाली और जांच एजेंसियों की कार्यक्षमता पर भी सवाल खड़ा करता है।

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