Bihar में नितीश कुमार की रणनीति से नए राजनीतिक संकेत

Bihar में राजनीतिक गतिविधियों का एक नया अध्याय खुलता दिख रहा है, जो मुख्यमंत्री Nitish Kumar की रणनीति और स्थिति को लेकर महत्वपूर्ण संकेत दे रहा है।

दिल्ली दौरे पर नितीश की पीएम मोदी-अमित शाह से मुलाकात नहीं

हाल ही में नितीश कुमार ने दिल्ली दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात नहीं की, जो उनकी बढ़ती असहिष्णुता का संकेत हो सकता है। उनके लौटने पर जदयू की बैठक बुलाई गई, जिसमें केंद्रीय मंत्री ललन सिंह की अनुपस्थिति ने सबको चौंका दिया।

Bihar Politics: जदयू की बैठक में मध्यावधि चुनाव की तैयारी के संकेत

बैठक में नितीश ने अपनी पार्टी के लिए 225 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा, जबकि वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने में लगभग एक साल बाकी है। क्या इसका मतलब है कि वे मध्यावधि चुनाव की तैयारी कर रहे हैं? ऐसी बातें भी उठ रही हैं कि ललन सिंह की अमित शाह के साथ नजदीकियां बढ़ रही हैं, जिससे यह सवाल उठता है कि जदयू में किसी प्रकार की दो फाड़ की कोशिशें चल रही हैं।

बिहार की राजनीति में चिराग पासवान भी इस स्थिति से चिंतित हैं। उन्हें आशंका है कि उनकी पार्टी के सांसद फिर से उनसे छिन सकते हैं।

इस बीच, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चेन्नई मेट्रो रेल प्रोजेक्ट के फेज 2 को मंजूरी दी, जो एक संकेत है कि भाजपा अपने सहयोगी दलों को यह स्पष्ट संदेश देना चाहती है कि उनके पास विकल्प हैं और उन्हें अपने ‘निरंतर बढ़ती मांगों पर काबू रखना चाहिए’।

अगर हम नितीश कुमार के हालात पर नजर डालें, तो उनकी पार्टी जदयू कभी बिहार की सबसे बड़ी पार्टी हुआ करती थी, लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में मात्र 43 सीटें जीत पाई। हालांकि, वे भाजपा या राजद के समर्थन से मुख्यमंत्री बने रहे, लेकिन अगर उन्होंने अपनी पार्टी को मजबूती नहीं दी, तो यह पद उनके हाथ से निकल सकता है।

Bihar News: ललन सिंह की अनुपस्थिति और चिराग पासवान की चिंताएं

इसलिए, नितीश कुमार को यह समझने की जरूरत है कि उन्हें भाजपा को स्पष्ट संकेत देना होगा कि उनके सांसदों के साथ छेड़छाड़ न की जाए और उन्हें एनडीए का मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जाए। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो उनके पास केंद्र में समर्थन वापस लेने और चिराग पासवान जैसी छोटी पार्टियों के साथ मिलकर तीसरा मोर्चा गठित करके मध्यावधि चुनाव कराने का विकल्प भी खुला हुआ है।

इस प्रकार, बिहार की राजनीति में जलेबी की मिठास से ज्यादा कड़वा संघर्ष दिखाई दे रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि नितीश कुमार इस स्थिति का सामना कैसे करते हैं और क्या वे फिर से अपने पुराने सामर्थ्य को पुनः प्राप्त कर सकेंगे।

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