Pakur: लिट्टीपाड़ा प्रखंड क्षेत्र में आजादी के कई दशक बाद भी ढिबरी के दुनिया में जी रहे लोग, कहना गलत नहीं होगा कि लिट्टीपाड़ा के पश्चमी क्षेत्र में लोग घुट घुट कर जी रहे हैं।आजादी के पचहत्तर साल बाद और झारखंड अलग राज्य गठन के चौबीस साल बाद भी लिट्टीपाड़ा प्रखंड में ऐसे कई गांव हैं, जहां तक जाने के लिए न तो सड़क है, न शुद्ध पेयजल की व्यवस्था है, न स्वास्थ्य केंद्र है, न स्कूल है,न रोशनी के लिए बिजली है और न ही रोजगार की कोई सार्थक व्यवस्था है।बात शुरू करते हैं पाकुड़ जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड अंतर्गत करमाटांड पंचायत के दलदली गांव की, जो प्रखंड मुख्यालय से लगभग 15कि.मी दूर है।
इस गांव में दो टोला है एक टोला मे आदिम जनजाति के लोग रहते है वही दूसरा टोला में आदिवासी लोग रहते हैं। इस गांव मे बाईस परिवार बसा हुआ है।स गांव से तीन किलो मीटर दूरी पर मुख्य सड़क है।पेयजल बहुत बड़ा समस्या है, लिट्टीपाड़ा प्रखंड क्षेत्र में लगातार दुषित पानी पीने से हो रहे बीमारी से कोई आंजान नही है, वही दलदली के ग्रामीण भी मजबुर है कि नाला का बहता पानी को विवश है।दलदली गांव में आज भी बिजली नहीं पहुंची है। ढिबरी ही लोगों के जीवन में रोशनी का सहारा है।ग्रामीणों को प्रखंड मुख्यालय जाने के लिए लगभग तीन कि.मी की दूरी तय करके दुर्गम पहाड़ियों तथा पथरीले रास्ते नाला पार करते हुए पैदल मुख्य सड़क जाना होता है। न स्कूल, न चिकित्सा सुविधा,गांव में एक भी व्यक्ति इतना पढ़ा लिखा नहीं मिला जो प्रखंड कार्यालय जाकर या गांव का दौरा कर रहे प्रशासनिक अधिकारियों या कर्मचारियों को अपनी समस्या सुना सके, हक अधिकार की मांग कर सके।
वहीं ग्रामीण रामा पहाड़ियां, जबरा पहाड़ियां, सरयू पहाड़ियां, सोनी पहाड़ीन सहित दर्जनों लोगों ने बताया कि हमलोग घुट घुट कर जी रहे हैं हमलोग गांव में विकास की सपने को देखकर अपना मताधिकार का प्रयोग करते हैं लेकिन विकास हमारे गांव में शून्य है। रास्ता नहीं होने के कारण हमारे बच्चे शिक्षा नहीं ले पा रहे हैं, न जाने कितनी महिलाएं काल के गाल में समा गई।फिर भी आज तक हमें सड़क नसीब नहीं हुआ है। सबसे हैरानी वाली बात है कि जो वर्षों से लिट्टीपाड़ा विधानसभा में अपना परचम लहराया है यहां के ग्रामीण उन्हें नहीं पहचानते। जब ग्रामीणों से वर्तमान विधायक का नाम पुछा तो ग्रामीणों ने कहा आज तक उन्हें न देखा है न ही कभी हमारे गांव पहुंचे हैं। तो नाम कैसे जानेंगे।
पगडंडी ही बना घर तक आने जाने का सहारा
सड़क की असुविधा का आलम यह है कि गांव में साइकिल, मोटरसाइकिल से पहुंचना तो सपने जैसा है। गांव में अगर कोई बीमार पड़ गया या किसी गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई तो समझिए उस परिवार के लिए आफत आ गई। अस्पताल तक पहुंचना असंभव सा हो जाता है। ग्रामीण खाट में उठाकर तीन किलो मीटर पैदल यात्रा करते हुए गांव के बाहर मुख्य सड़क पर इंतजार में खड़ी एंबुलेंस तक मरीज को पहुंचाते हैं। तब जाकर इलाज संभव हो पाता है।
दलदली गांव पहुंचे भाजपा नेता, ग्रामीणों की समस्या हुए अवगत
भाजपा नेता दानिएल किस्कू ने कहा कि ग्रामीणों की सूचना पर दलदली गांव पहुंचा हूं। इस गांव को देखकर मन बड़ा उदास है। वर्तमान विधायक दिनेश विलियम मरांडी को ऐसे गांव को चिह्नित करना चाहिए था लेकिन आज तक इस गांव में अपना पैर तक नहीं रखा है।जबकि कई वर्षों से लिट्टीपाड़ा विधानसभा में एक ही परिवार राज कर रहे हैं लेकिन यहां विकास शून्य है। जेएमएम वोट बैंक की राजनीति करता है। यहां की भोले भाले आदिवासी लोगों को वोट के नाम पर ठगते है। लेकिन इस बार यहां की जनता ठगबंधन की सरकार की मंशा को जान चुकी है।अगर लिट्टीपाड़ा विधानसभा से पार्टी मुझे मौका देगी और जनता समर्थन करेंगे तो मैं पांच सालों में पूरे लिट्टीपाड़ा विधानसभा का तस्वीर बदल दूंगा। कोई ऐसा गांव नहीं होगा जहां एंबुलेंस नहीं पहुंचेगा, हरेक गांव तक मुख्य सड़क से जोड़ने का काम करूंगा।
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