झारखंड के CM Hemant Soren के बरहेट विधानसभा क्षेत्र में नामांकन के प्रस्तावक मंडल मुर्मू के हालिया गतिविधियों ने राज्य में चुनावी माहौल को गर्म कर दिया है।
झारखंड में 13 और 20 नवंबर को मतदान होना है, और इससे कुछ हफ्ते पहले ही मंडल मुर्मू ने भाजपा नेताओं से संपर्क कर राजनीतिक चर्चाओं को बढ़ावा दिया है।
27 अक्टूबर को झारखंड पुलिस ने मंडल मुर्मू को उस समय हिरासत में लिया जब वे भाजपा सांसद निशिकांत दुबे से मिलने जा रहे थे। मुर्मू ने दावा किया कि उन्होंने दुबे से बांग्लादेशी घुसपैठ जैसे मुद्दों पर चर्चा की। वहीं, झामुमो ने आरोप लगाया कि उन्हें अज्ञात लोगों द्वारा जबरन ले जाया गया। इस घटनाक्रम पर मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने झारखंड के मुख्य सचिव और डीजीपी से पूछताछ की कि पुलिस ने कैसे मुर्मू और अन्य को हिरासत में लिया।
नामांकन प्रक्रिया में प्रस्तावक की भूमिका और संभावित अड़चनें
प्रस्तावक का काम नामांकन पत्रों पर हस्ताक्षर करना होता है, जो चुनाव में उम्मीदवार की वैधता की पुष्टि करता है। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत मान्यता प्राप्त दलों के उम्मीदवारों के लिए एक प्रस्तावक जरूरी है। एक उम्मीदवार अधिकतम चार नामांकन दाखिल कर सकता है, जिसमें से केवल एक ही स्वीकार किया जाएगा।
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सामान्यतः, उम्मीदवार अपने प्रस्तावक के रूप में अपने क्षेत्र के प्रमुख व्यक्तियों को चुनते हैं। हेमंत सोरेन ने मंडल मुर्मू को चुना, जो संथाल विद्रोह के प्रमुख नेता सिद्धो और कान्हू मुर्मू के वंशज हैं। इस प्रकार, यह सियासी महत्व भी रखता है।
क्या प्रस्तावक का व्यवहार नामांकन को रद्द कर सकता है?
नामांकन रद्द तब हो सकता है यदि नामांकन पत्र समय सीमा से पहले जमा नहीं किया गया हो या अगर प्रस्तावक के हस्ताक्षर फर्जी साबित हों। हालाँकि, प्रस्तावक के प्रतिद्वंद्वी दलों से मिलने या किसी अन्य पार्टी में शामिल होने से नामांकन रद्द नहीं होता।
इससे पहले सूरत लोकसभा चुनाव में, कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभानी के तीन प्रस्तावकों ने कागजात पर हस्ताक्षर से इनकार किया था, जिससे उनका नामांकन खारिज कर दिया गया था।