Jharkhand Liquor Scam: झारखंड के बहुचर्चित शराब घोटाले (Jharkhand Liquor Scam) में एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) की जांच से कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।
यह महज प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि एक सुनियोजित साजिश प्रतीत होती है, जिसमें राज्य के वरिष्ठ अफसरों और निजी कंपनियों के बीच गहरी सांठगांठ की बात सामने आ रही है।
Jharkhand Liquor Scam: साजिश कैसे रची गई?
ACB की रिपोर्ट के मुताबिक, तत्कालीन उत्पाद सचिव और जेएसबीसीएल (Jharkhand State Beverages Corporation Limited) के प्रबंध निदेशक विनय कुमार चौबे की भूमिका इस घोटाले में केंद्र में रही।
- नीतियों का निर्माण
- ठेकों का आवंटन
- वित्तीय निगरानी और नियंत्रण
इन सभी बिंदुओं पर चौबे का प्रभाव स्पष्ट रहा। उनके कार्यकाल में गैर-प्रदर्शन करने वाली कंपनियों से न तो जुर्माना वसूला गया, न ही गारंटी राशि का नकदीकरण किया गया।
Jharkhand Liquor Scam: 200 करोड़ रुपये का नुकसान, फिर भी कार्रवाई नहीं
9 महीनों में राज्य सरकार को 200 करोड़ रुपये से अधिक का घाटा हुआ, लेकिन विभाग ने केवल डिमांड नोटिस भेजे, बैंकिंग चैनलों से वसूली का कोई ठोस प्रयास नहीं किया। यह संकेत देता है कि अधिकारियों को कंपनियों की वित्तीय कमजोरी और सुरक्षा गारंटियों की असलियत पहले से पता थी — और जानबूझकर फायदा पहुँचाया गया।
Jharkhand Liquor Scam: संगठित गिरोह की तरह काम किया गया?
ACB की जांच बताती है कि यह केवल कुछ व्यक्तियों की लापरवाही नहीं, बल्कि उत्पाद विभाग के भीतर और बाहर बैठे लोगों के गठजोड़ का परिणाम है। निजी कंपनियों को खुली छूट दी गई और सरकारी नियमों को नजरअंदाज कर राज्य को वित्तीय नुकसान पहुंचाया गया।
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IAS चौबे पर शिकंजा, लेकिन सवाल बाकी हैं
वरिष्ठ IAS अधिकारी विनय कुमार चौबे और संयुक्त उत्पाद आयुक्त गजेंद्र सिंह की गिरफ्तारी हो चुकी है। हालांकि चौबे इस समय किडनी संबंधित बीमारी के चलते रांची के रिम्स अस्पताल में भर्ती हैं। ACB उन्हें 28 जून से पहले पुलिस रिमांड पर लेकर पूछताछ करेगी।
नए कानूनी प्रावधानों के अनुसार:
- पूछताछ की अवधि 40 दिन तक बढ़ा दी गई है (पहले 15 दिन थी)
- अगर मामला 10 साल से ज्यादा की सजा वाला हो, तो यह अवधि 60 दिन तक बढ़ सकती है
रिम्स में चौबे का इलाज जारी
- चौबे की हालत स्थिर बताई जा रही है
- मेडिकल टीम गठित की गई है
- उनकी पत्नी को मिलने नहीं दिया गया, जेल मैनुअल के नियमों के तहत
राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में हलचल
घोटाले की परतें खुलते ही झारखंड की राजनीतिक गलियों में खलबली मच गई है। विपक्ष इसे राज्य सरकार की निगरानी विफलता बता रहा है, वहीं सत्ताधारी दल फिलहाल रक्षात्मक मुद्रा में है।
आगे क्या हो सकता है?
- ACB रिमांड में चौबे से गहन पूछताछ
- अन्य अफसरों और कंपनियों पर भी शिकंजा
- नीति निर्माण की समीक्षा
- राज्यसभा या विधानसभा में बहस संभव
- राजनीतिक दलीलों में सियासी घमासान
विश्लेषणात्मक निष्कर्ष:
यह मामला केवल आर्थिक भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि यह दर्शाता है कि राज्य संस्थाओं में पारदर्शिता, जवाबदेही और ईमानदारी की कितनी गहरी कमी है। यदि इस प्रकरण की निष्पक्ष और गहराई से जांच हुई, तो यह झारखंड में प्रशासनिक सुधारों की नई शुरुआत भी बन सकता है।
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