पटना: Prashant Kishor: बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) की प्रक्रिया शुरू किए जाने को लेकर राजनीतिक बवाल गहराता जा रहा है।
पहले से ही विपक्ष इस कवायद को गरीबों, अल्पसंख्यकों और वंचित तबकों को वोट देने से रोकने की साजिश बता रहा था, अब जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने भी चुनाव आयोग से तीखे सवाल पूछते हुए इस प्रक्रिया की पारदर्शिता और मापदंडों पर सफाई मांगी है।
Prashant Kishor के सवाल
प्रशांत किशोर ने कहा:
“चुनाव आयोग को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वोटर लिस्ट में संशोधन की प्रक्रिया क्या है? इसके नियम और मापदंड क्या हैं? किस आधार पर किसी का नाम जोड़ा या हटाया जाएगा?“
उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र चुनाव के बाद मतदाता सूची की प्रक्रिया को लेकर गंभीर संदेह और सवाल उठे थे, लेकिन आयोग ने अब तक कोई ठोस और सार्वजनिक स्पष्टीकरण नहीं दिया। अब जब बिहार में चुनाव से कुछ ही महीने पहले यह प्रक्रिया चल रही है, तो इसे लेकर जनता और राजनीतिक दलों को विश्वास में लेना ज़रूरी है।
पीके ने कहा कि मतदाता सूची में अगर ग़लती से किसी का नाम हटता है, तो यह जनतंत्र की बुनियादी भावना के खिलाफ होगा। उन्होंने चेताया कि “लोगों में यह डर है कि सरकार के विरोधी वर्गों के नाम वोटर लिस्ट से हटाए जा सकते हैं। यह डर चुनाव आयोग की साख को नुकसान पहुंचा सकता है।”
तेजस्वी यादव का आरोप
इससे पहले नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी इस गहन पुनरीक्षण पर सवाल उठाते हुए कहा था:
“जो काम पिछली बार दो साल में हुआ, वही इस बार 25 दिन में कैसे पूरा होगा? यह गरीबों को वोट देने से रोकने की साजिश है।“
उन्होंने केंद्र सरकार पर तंज कसते हुए पूछा, “अगर ऐसा ही है तो जातीय जनगणना भी 25 दिन में क्यों नहीं करा ली जाती?”
अन्य नेताओं की प्रतिक्रिया
- भाकपा माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने आरोप लगाया कि “यह वोटरबंदी की कोशिश है, जिससे विपक्ष के समर्थक वर्गों को चुनाव प्रक्रिया से बाहर किया जा सके।“
- वीआईपी के प्रवक्ता देव ज्योति ने कहा कि “यह बैकडोर से एनआरसी थोपने की साजिश है।“
- महागठबंधन ने सामूहिक रूप से इस प्रक्रिया को चुनावी गड़बड़ी की भूमिका तैयार करने वाला कदम बताया है।
चुनाव आयोग का क्या कहना है?
बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार:
- यह विशेष पुनरीक्षण 22 साल बाद किया जा रहा है (पिछली बार 2003 में हुआ था)।
- बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) घर-घर जाकर दस्तावेज मांग रहे हैं और वैध प्रमाणपत्र के आधार पर सत्यापन कर रहे हैं।
- मतदाताओं से फॉर्म और दस्तावेज भरवाकर लिया जा रहा है जिसे ऑनलाइन भी अपलोड किया जा सकता है।
- इसके पीछे मतदाता सूची को सटीक और अद्यतन करने का उद्देश्य बताया गया है।
लोकतंत्र बनाम संदेह की राजनीति
बिहार चुनाव के पहले वोटर लिस्ट संशोधन पर उठते सवाल राजनीतिक दलों के बीच विश्वास की कमी को उजागर करते हैं। अब देखना यह होगा कि चुनाव आयोग कितनी जल्दी और कितनी प्रभावी तरीके से इन सवालों का जवाब देता है, और क्या वह सभी वर्गों को आश्वस्त कर पाएगा कि यह प्रक्रिया पारदर्शी, निष्पक्ष और बिना किसी राजनीतिक हस्तक्षेप के है।
आपकी राय में क्या चुनाव आयोग को खुले मंच पर स्पष्टीकरण देना चाहिए?