झारखंड बीजेपी अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष Babulal Marandi बुधवार को एक बिल्कुल अलग रूप में नजर आए। गिरिडीह जिले के अपने पैतृक गांव कोदाइबांक पहुंचे बाबूलाल इस बार राजनीति की नहीं, खेती-बाड़ी की बात करते दिखे।
आज कोदांईबांक स्थित अपने खेत में धान की रोपाई की। खेतों में काम करना मुझे हमेशा आत्मिक संतोष और आनंद प्रदान करता है। कृषि हमें आत्मनिर्भरता के साथ-साथ जमीन से जुड़े रहने का भाव भी सिखाती है।@BJP4India @narendramodi @JPNadda @AmitShah @blsanthosh @BJP4Jharkhand pic.twitter.com/hXc24AxeW4
— Babulal Marandi (@yourBabulal) July 16, 2025
खेतों में पारंपरिक धोती-कुर्ता पहने बाबूलाल मरांडी ने खुद अपने हाथों से धान की रोपाई की और एक सच्चे किसान की तरह मिट्टी से जुड़कर आत्मिक संतोष प्राप्त किया. बाबूलाल मरांडी ने अपने इस अनुभव को सोशल मीडिया पर भी साझा किया। उन्होंने खेत में काम करते हुए तस्वीरें पोस्ट कीं और लिखा “खेती करना मुझे बहुत अच्छा लगता है। इससे मुझे आत्मसंतुष्टि मिलती है।”
उनके इस सरल और जमीन से जुड़े अंदाज़ ने आम जनता के बीच उन्हें और भी करीब ला दिया है। सोशल मीडिया पर लोगों ने उनकी तारीफ करते हुए लिखा कि “ऐसे नेता ही जनता की सच्ची नब्ज समझते हैं।”
धान की खेती से जुड़ी विरासत: Babulal Marandi
गिरिडीह का यह इलाका झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में आता है, जहां अब भी परंपरागत खेती पद्धतियां जीवित हैं। धनरोपनी या धान की रोपाई, खासकर मॉनसून के मौसम में, गांव की सामूहिक जीवनशैली और मेहनत का प्रतीक होती है। बाबूलाल मरांडी का इस प्रक्रिया में भाग लेना यह दर्शाता है कि वह गांव की जड़ों से कटे नहीं हैं बल्कि समय-समय पर वे अपनी माटी से जुड़ने आते रहते हैं।
Babulal Marandi का राजनीति से परे एक संवेदनशील चेहरा
बाबूलाल मरांडी के इस किसान रूप ने यह साफ कर दिया कि वे केवल राजनीतिक नेता नहीं, बल्कि एक संवेदनशील और जमीनी नेता हैं जो किसानों की समस्याएं सिर्फ सुनते नहीं, जीते भी हैं। झारखंड जैसे कृषि-प्रधान राज्य में, जब नेता खुद खेत में उतरते हैं, तो यह एक प्रेरणा का काम करता है कि खेती केवल मजदूरी नहीं, सम्मान की बात है।
खेती को समझें, किसान को अपनाएं: Babulal Marandi
मरांडी जी की यह पहल सिर्फ एक फोटो-ऑप नहीं थी बल्कि एक गहरा सामाजिक संदेश भी था कि खेती में श्रम है, तपस्या है और आत्मसंतोष भी। आज जब युवा पीढ़ी खेती से दूरी बना रही है, ऐसे में एक वरिष्ठ नेता का इस तरह से खेतों में उतरना, कृषि और किसान के गौरव को पुनर्स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।
बाबूलाल मरांडी का यह किसान अवतार न केवल एक मानवीय पहलू को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि नेतृत्व सिर्फ मंच पर नहीं, मिट्टी में भी नजर आता है। उनके इस प्रयास ने राजनीति और खेती के बीच की दूरी को कम किया है, और एक नई सोच को जन्म दिया है।