बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव (Bihar Chunav) की आहट के साथ ही नीतीश कुमार सरकार ने सामाजिक समीकरण साधने की रणनीति तेज कर दी है। इसी कड़ी में सरकार ने शनिवार को मछुआरा आयोग (Fisheries Commission) के गठन की घोषणा कर दी। पूर्वी चंपारण के अजगरी चुड़िहरवा टोला निवासी ललन कुमार को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
Bihar Chunav: आयोग में शामिल चेहरे
पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार आयोग में कुल पाँच सदस्य शामिल हैं:
- ललन कुमार – अध्यक्ष
- अजीत चौधरी (बक्सर) – उपाध्यक्ष
- विद्या सागर सिंह निषाद (समस्तीपुर) – सदस्य
- राजकुमार (पटना) – सदस्य
- रेणु सिंह (भागलपुर) – सदस्य
यह आयोग मछुआरा समाज के कल्याण, सुरक्षा और आर्थिक विकास पर काम करेगा। माना जा रहा है कि यह कदम निषाद समाज के वोट बैंक को साधने की एक बड़ी कोशिश है।
Bihar Chunav: निषाद समाज: वोट बैंक की राजनीति
बिहार में निषाद समाज की आबादी लगभग 8-9 फीसदी मानी जाती है। मल्लाह, केवट, निषाद, बिंद, गोंड़ जैसी जातियाँ इस समाज में आती हैं। यह वर्ग लंबे समय से राजनीतिक प्रतिनिधित्व और आरक्षण की मांग कर रहा है।
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मुकेश सहनी, जिन्हें “सन ऑफ मल्लाह” कहा जाता है, इस समाज के प्रमुख चेहरे हैं और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख हैं। VIP वर्तमान में महागठबंधन का हिस्सा है। मछुआरा आयोग का गठन सहनी के प्रभाव को चुनौती देने की रणनीति मानी जा रही है।
भाजपा की समानांतर रणनीति
भाजपा भी निषाद वोट बैंक पर नजर रखे हुए है। प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल पहले ही मछुआरा आयोग के गठन की घोषणा कर चुके थे। भाजपा ने हर प्रमंडल में मछुआरा सम्मेलन आयोजित करने का ऐलान किया है:
- 10 जून – मुजफ्फरपुर
- 14 जून – कटिहार
- 18 जून – दरभंगा
- 22 जून – मोतिहारी
- 26 जून – समस्तीपुर
- 30 जून – खगड़िया
- 10 जुलाई – पटना
यह स्पष्ट है कि नीतीश सरकार और भाजपा दोनों ही निषाद समाज को लुभाने की होड़ में हैं।
सामाजिक संतुलन की कवायद?
नीतीश सरकार पहले ही सवर्ण आयोग, महादलित आयोग और SC-ST आयोग जैसे संस्थानों का गठन कर चुकी है। अब मछुआरा आयोग के गठन को “सामाजिक संतुलन” की दिशा में एक और कदम बताया जा रहा है। लेकिन विपक्ष इसे चुनावी फायदा उठाने की रणनीति करार दे रहा है।
बिहार में चुनावी माहौल बनने लगा है और राजनीतिक दल अपनी-अपनी सामाजिक गणित को मजबूत करने में जुट गए हैं। मछुआरा आयोग का गठन नीतीश कुमार की पारंपरिक सोशल इंजीनियरिंग रणनीति का हिस्सा है, वहीं भाजपा इस वोट बैंक में सहनी के प्रभाव को कमजोर करने की ओर बढ़ रही है। देखना यह है कि निषाद समाज इस बार किसके साथ खड़ा होता है।
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