गुमला: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री Raghubar Das ने शुक्रवार को गुमला में प्रेस वार्ता के दौरान राज्य की हेमंत सोरेन सरकार पर तीखा हमला बोला।
झारखंड की हेमंत सरकार पेसा कानून लागू नहीं करना चाहती है। पेसा कानून लागू होने से झारखंड में ग्रामीण स्वशासन का अधिकार मिलेगा। यहां की रूढ़िवादी परंपरा को विस्तार मिलेगा।
गांव के विकास में परंपरागत ग्राम प्रधान को अधिकार मिलेगा।परंपरा और संस्कृति का सरंक्षण होगा। इसके मोदी सरकार… pic.twitter.com/t1kMOaDwUU
— Raghubar Das (@dasraghubar) May 30, 2025
उन्होंने कहा कि राज्य में पेसा कानून लागू नहीं होने से आदिवासी समाज संकट में है और इसकी जिम्मेदारी मौजूदा सरकार की है। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार घुसपैठियों और धर्मांतरण के मुद्दे पर चुप है, जिससे झारखंड की संस्कृति और आदिवासी पहचान पर खतरा मंडरा रहा है।
क्या बोले Raghubar Das?
- “घुसपैठ और धर्मांतरण से खतरे में आदिवासी समाज”
रघुवर दास ने दावा किया कि राज्य में बांग्लादेशी घुसपैठियों और मिशनरी संगठनों के कारण आदिवासी समाज की संस्कृति, पहचान, वेशभूषा और परंपरा खत्म होने की कगार पर है। - “पेसा कानून नहीं लागू करने से सरकार को डर”
उन्होंने कहा कि हेमंत सरकार को अपनी सत्ता जाने का डर है, इसलिए वह पेसा कानून को जानबूझकर टाल रही है। - “पेसा कानून रुका, तो रुकी विकास की राशि”
दास के मुताबिक, केंद्र सरकार ने 2024-25 के लिए ₹1400 करोड़ की राशि रोक दी है, क्योंकि पेसा कानून अब तक झारखंड में लागू नहीं किया गया है। ये फंड जनजातीय विकास योजनाओं के लिए निर्धारित है।
Raghubar Das News: पेसा कानून क्या है?
पेसा (PESA) यानी Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act, 1996, अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदायों को स्वशासन और संसाधनों पर अधिकार देने के लिए लाया गया एक विशेष कानून है। यह ग्राम सभा को निर्णायक अधिकार देता है — भूमि, खनिज, जल, जंगल आदि पर।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
- भाजपा के अनुसार, पेसा लागू न करना सरकार की आदिवासी विरोधी नीति का हिस्सा है।
- जबकि हेमंत सोरेन सरकार का दावा रहा है कि वह परामर्श के बाद कानून लागू करेगी, ताकि यह स्थानीय संदर्भ में उपयुक्त हो।
रघुवर दास के इस बयान से एक बार फिर पेसा कानून को लेकर राजनीतिक बहस तेज हो गई है। सवाल यह है कि आदिवासी हितों की रक्षा के लिए किस दल की नीति ज़मीनी स्तर पर प्रभावी है — और क्या वाकई में पेसा कानून को टालने से झारखंड के आदिवासी समाज की अस्मिता खतरे में पड़ रही है?
आगे की राजनीति और नीति दोनों पर देशभर की नजरें टिकी हैं।
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