Ranchi: Nishikant Dubey: लोकसभा में भाषा को लेकर एक बार फिर गरमा-गरम बहस देखने को मिली। झारखंड के गोड्डा से सांसद निशिकांत दुबे ने अंग्रेज़ी और भारतीय भाषाओं के स्थान को लेकर स्पष्ट और तीखा संदेश दिया “आपके कहने से मैं अंग्रेज़ी नहीं बोलूंगा। अंग्रेज़ी कोई हमारी पहचान या मजबूरी नहीं है। मेरी ज़ुबान मेरे देश की मिट्टी से बनी है।”
उन्होंने कहा अंग्रेज़ी में बोलिए
मैंने कहा नहीं, मैं हिंदी में बोलूंगा
मुझे हिंदी पे गर्व है
मुझे तमिल पे गर्व है
मुझे बंगाली, मराठी, हर भारतीय भाषा पे गर्व है
अंग्रेज़ी मेरी मजबूरी नहीं, और न ही मेरी पहचान
मेरी ज़ुबान मेरे देश की मिट्टी से बनी है
और मैं उसी में बोलना पसंद करता… pic.twitter.com/DGneowtqk3— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) July 29, 2025
क्या बोले Nishikant Dubey?
सांसद ऑपरेशन सिंदूर जैसे अहम मुद्दे पर बोल रहे थे, तभी चर्चा में अंग्रेज़ी बनाम भारतीय भाषाओं का विवाद उभर आया। उन्होंने सदन में जोर देकर कहा—
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“अगर कोई तमिल या बांग्ला या किसी भारतीय भाषा में बोलने के लिए कहे तो मुझे गर्व होता, क्योंकि ये हमारी भाषाएँ हैं।
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लेकिन जब आप अंग्रेज़ी बोलने के लिए कहते हैं, तो यह एक विदेशी भाषा है। मैं हिंदी में बोलूंगा क्योंकि मुझे हिंदी, तमिल, बंगाली, मराठी—हर भारतीय भाषा पर गर्व है।”
सोशल मीडिया पर वायरल
दुबे ने संसद में अपनी तीखी टिप्पणियों का वीडियो भी प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर साझा किया। उन्होंने लिखा—
“उन्होंने कहा अंग्रेज़ी में बोलिए। मैंने कहा नहीं, मैं हिंदी में बोलूंगा। मुझे हिंदी पर गर्व है। मुझे तमिल पर गर्व है। मुझे बंगाली, मराठी, हर भारतीय भाषा पर गर्व है। अंग्रेज़ी मेरी मजबूरी नहीं, न ही मेरी पहचान है। मेरी ज़ुबान मेरे देश की मिट्टी से बनी है और मैं उसी में बोलना पसंद करता हूँ।”
भाषा पर सदन में बार-बार उठती बहस
भारत की संसद, अदालतों और प्रशासनिक व्यवस्थाओं में अंग्रेज़ी की अनिवार्यता को लेकर समय-समय पर बहस होती रही है। निशिकांत दुबे के बयान ने एक बार फिर भाषा और पहचान के मुद्दों को फ्रंटफुट पर ला दिया है।
उनका कहना है कि अंग्रेज़ी कोई श्रेष्ठता का पैमाना नहीं है और भारतीय भाषाएँ हमारी असली ताकत और गौरव हैं।
निशिकांत दुबे के बयान से भाषा की गरिमा, क्षेत्रीय अस्मिता और अपनी मिट्टी से जुड़े रहने का संदेश मिला है। सोशल मीडिया पर भी उनके समर्थन में कई प्रतिक्रियाएँ आईं, वहीं कुछ वर्गों में पारंपरिक बनाम ग्लोबल टाइम्स की बहस फिर ताजा हो गई है।