Ghatshila by Election: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के साथ-साथ झारखंड की राजनीति में भी चुनावी सरगर्मियाँ तेज़ हो गई हैं। पूर्वी सिंहभूम ज़िले की घाटशिला विधानसभा सीट पर उपचुनाव की तारीख़ का औपचारिक ऐलान हो गया है। मतदान 11 नवंबर, 2025 को होगा और मतगणना 14 नवंबर को होगी। इस उपचुनाव को सिर्फ़ एक सीट के लिए नहीं, बल्कि झारखंड की राजनीतिक दिशा तय करने वाला मुकाबला माना जा रहा है।
घाटशिला उपचुनाव क्यों ख़ास है?
घाटशिला उपचुनाव ऐसे समय में हो रहा है जब झारखंड में हेमंत सोरेन की अभौम सरकार कई चुनौतियों का सामना कर रही है। यह सीट झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के वरिष्ठ नेता और राज्य मंत्री रामदास सोरेन के निधन के कारण रिक्त हुई है। रामदास सोरेन आदिवासी समुदाय के एक प्रमुख नेता थे और इस क्षेत्र में झामुमो की मज़बूत उपस्थिति है।
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क्या झामुमो को सहानुभूति का फ़ायदा होगा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि घाटशिला उपचुनाव में सहानुभूति वोटों की लहर झामुमो के पक्ष में जा सकती है। लेकिन हेमंत सोरेन सरकार की मौजूदा स्थिति और भ्रष्टाचार के आरोपों ने चुनाव को चुनौतीपूर्ण बना दिया है। विपक्ष लगातार सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहा है।
भाजपा के लिए अग्निपरीक्षा, आदिवासी मतदाता होंगे निर्णायक
घाटशिला एक आदिवासी बहुल निर्वाचन क्षेत्र है, और भाजपा को यहाँ एक और अग्निपरीक्षा का सामना करना पड़ेगा। भाजपा के पास अर्जुन मुंडा, बाबूलाल मरांडी और चंपई सोरेन जैसे आदिवासी नेता हैं, लेकिन पार्टी की स्थिति 2014 या 2019 जितनी मज़बूत नहीं मानी जा रही है।
हेमंत बनाम मुंडा-चंपई-मरांडी: कौन जीतेगा?
यह चुनाव, कुछ हद तक, हेमंत सोरेन के करिश्मे की भी परीक्षा है। दूसरी ओर, भाजपा के पास आदिवासी नेताओं की एक फौज है, लेकिन क्या वे एकजुट होकर हेमंत को चुनौती दे पाएँगे? इस सवाल का जवाब 14 नवंबर को मिलेगा।
2024 के लोकसभा चुनाव के बाद पहली बड़ी परीक्षा
2024 में झारखंड की ज़्यादातर लोकसभा सीटों पर भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा, लेकिन विधानसभा चुनाव में समीकरण अलग हो सकते हैं। घाटशिला का नतीजा तय कर सकता है कि आने वाले महीनों में झारखंड की राजनीति किस दिशा में जाएगी।