New Delhi: उपराष्ट्रपति Jagdeep Dhankhar के अचानक इस्तीफे ने पूरे देश को चौंका दिया है। सोमवार देर रात उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
— Vice-President of India (@VPIndia) July 21, 2025
लेकिन उनके इस फैसले से कहीं अधिक चर्चा उनके उस कार्यकाल की हो रही है, जिसमें उन्होंने खुलकर कई संवेदनशील मुद्दों पर बेबाक राय रखी — फिर चाहे वो न्यायपालिका हो, केंद्र सरकार हो या अंतरराष्ट्रीय मंच पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप।
धनखड़ अपने स्पष्टवादी और निर्भीक स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। उनके कई बयान विवाद और बहस का कारण बने, जिन्होंने सत्ता, विपक्ष और न्यायपालिका को समान रूप से चुनौती दी।
Jagdeep Dhankhar: न्यायपालिका पर तीखा प्रहार, अनुच्छेद 142 को बताया “परमाणु मिसाइल”
धनखड़ ने अपने कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर सवाल उठाते हुए कहा था कि अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ एक “परमाणु मिसाइल” बन चुका है, जिसे जब चाहे तब अदालत इस्तेमाल कर सकती है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब संसद द्वारा सर्वसम्मति से कोई कानून पास होता है, तो अदालत उसे क्यों रद्द कर देती है?
उन्होंने कहा था, “हम ऐसे दौर में हैं जहां न्यायाधीश कानून बना रहे हैं, कार्यपालिका का काम कर रहे हैं और एक ‘सुपर संसद’ की तरह काम कर रहे हैं, लेकिन उनकी कोई जवाबदेही नहीं है।”
Jagdeep Dhankhar Resignation: किसान मुद्दों पर भी सरकार से टकराव
एक किसान परिवार से आने वाले धनखड़ ने कृषि मंत्री से सवाल पूछते हुए कहा था, “किसानों से क्या वादा किया गया था? उसे क्यों नहीं निभाया गया? अब तक दो बार आंदोलन हो चुके हैं, लेकिन समाधान नहीं निकला।” उन्होंने कहा कि जब भारत तेजी से प्रगति कर रहा है, तब किसान आज भी परेशान और पीड़ित क्यों है?
Jagdeep Dhankhar News: ट्रंप को दिया था करारा जवाब
इस्तीफे से दो दिन पहले ही धनखड़ ने इशारों-इशारों में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को करारा जवाब दिया था। उन्होंने कहा था, “दुनिया की कोई ताकत भारत को यह निर्देश नहीं दे सकती कि उसे अपने मामले कैसे संभालने हैं।” यह बयान तब आया जब ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान झड़प पर कथित ‘सीजफायर मध्यस्थता’ का दावा किया था।
संसद, जज और राष्ट्रपति को लेकर भी दिए थे तीखे बयान
धनखड़ ने कहा था, “हम एक ऐसे दौर में हैं जहां सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को समयबद्ध निर्देश दे रहा है। यदि राष्ट्रपति तय समय में फैसला नहीं लेते तो अदालत का आदेश ही कानून बन जाता है।” उन्होंने इसे लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा बताया था।
जगदीप धनखड़ का इस्तीफा सिर्फ एक पद छोड़ने की घटना नहीं है, बल्कि भारतीय राजनीति में एक बेबाक, मुखर और संवैधानिक चर्चाओं से भरे अध्याय का अंत भी है। उनकी आवाज़ संसद से बाहर चली गई है, लेकिन उनके विचार और बयान आने वाले दिनों में राजनीतिक और कानूनी विमर्श का हिस्सा बने रहेंगे।
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