पटना। बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Sarkar) ने आयोगों की तैनाती को लेकर बड़ा कदम उठाया है।
सरकार ने सोमवार को कई नए आयोगों का गठन कर दिया है, जिनमें बीजेपी, आरएलएम, लोजपा (आर) और हम पार्टी के नेताओं को प्रमुख पदों पर नियुक्त किया गया है। इस राजनीतिक संतुलन को साधने के प्रयास को लेकर विपक्ष ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी है।
Nitish Sarkar : किसान आयोग का गठन, बीजेपी नेता बने अध्यक्ष
राज्य सरकार ने बिहार किसान आयोग का गठन करते हुए बीजेपी के रूप नारायण मेहता को अध्यक्ष नियुक्त किया है। मेहता वर्तमान में भाजपा पटना महानगर के अध्यक्ष हैं। कृषि विभाग ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी है।
नागरिक परिषद में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को तवज्जो
सरकार ने बिहार राज्य नागरिक परिषद का भी गठन कर दिया है, जिसमें 32 नेताओं को शामिल किया गया है। इस परिषद के संरक्षक राज्यपाल और अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार होंगे।
आरएलएम (राष्ट्र लोक जनता पार्टी) के नेता माधव आनंद को उपाध्यक्ष बनाया गया है। इनके साथ मंजीत कुमार सिं को भी वाइस प्रेसिडेंट की जिम्मेदारी दी गई है। परिषद में 7 महासचिव और 21 अन्य सदस्य भी नामित किए गए हैं।
उद्यमी एवं व्यवसाय आयोग की घोषणा
इसके अलावा बिहार राज्य उद्यमी एवं व्यवसाय आयोग का भी गठन किया गया है। इसमें भाजपा नेता सुरेश रुंगटा को अध्यक्ष और अरविंद कुमार निराला को उपाध्यक्ष बनाया गया है। साथ ही विभिन्न जिलों से आठ अन्य सदस्यों को भी शामिल किया गया है।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तेज
आयोगों की ताबड़तोड़ घोषणाओं और एनडीए घटक दलों के नेताओं को अहम जिम्मेदारियां देने को लेकर विपक्ष ने तीखा हमला बोला है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि सरकार आयोगों को “रिश्तेदारी आयोग” बना रही है। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा, “अब तो जमाई आयोग भी बना देना चाहिए।”
तेजस्वी का इशारा अनुसूचित जाति आयोग की नियुक्तियों की ओर था, जहां मृणाल पासवान, जो लोजपा (आर) प्रमुख चिराग पासवान के जीजा हैं, को अध्यक्ष बनाया गया है, और देवेंद्र मांझी, जो हम पार्टी संरक्षक जीतनराम मांझी के दामाद हैं, उपाध्यक्ष बने हैं।
आगामी चुनावों से पहले आयोगों का यह पुनर्गठन जहां एनडीए के भीतर राजनीतिक संतुलन साधने की कवायद मानी जा रही है, वहीं विपक्ष इसे सत्ता का दुरुपयोग और रिश्तेदारों को लाभ पहुंचाने की साजिश बता रहा है। अब देखना होगा कि यह राजनीतिक रणनीति नीतीश सरकार को कितना फायदा पहुंचाती है।