Sunday, July 27, 2025
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सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और JSSC को जारी किया नोटिस, 2016 की नियुक्ति प्रक्रिया पर उठे सवाल

हाई स्कूल शिक्षक नियुक्ति के 2016 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार और झारखंड स्टाफ सेलेक्शन कमीशन (JSSC) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि उन्हें प्रमाणपत्र सत्यापन (डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन) की प्रक्रिया से वंचित कर दिया गया, जिससे वे नियोजन सूची में शामिल नहीं हो सके।

JSSC News: दूरस्थ इलाकों के अभ्यर्थियों को नहीं मिली मेरिट लिस्ट की सूचना

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वे राज्य के दूर-दराज के क्षेत्रों में निवास करते हैं, जहां सूचना पहुँचने की सुविधा बेहद सीमित है। उन्होंने अदालत को बताया कि मेरिट लिस्ट के प्रकाशन और दस्तावेज सत्यापन के लिए बुलावे की सूचना उन्हें समय पर नहीं मिली। इसी वजह से वे प्रमाणपत्र सत्यापन में भाग नहीं ले पाए और उनके भविष्य पर संकट आ गया।

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JSSC News: अभ्यर्थियों ने लगाया पक्षपात का आरोप

याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में यह भी दावा किया कि जेएसएससी ने कुछ अभ्यर्थियों को व्यक्तिगत रूप से मेल और मैसेज के माध्यम से सूचना दी थी, जबकि अन्य को ऐसी कोई सुविधा नहीं दी गई। इससे चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से यह आग्रह किया है कि उन्हें भी प्रमाणपत्र सत्यापन का अवसर दिया जाए और उनकी नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने लिया मामले का संज्ञान

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को गंभीरता से लेते हुए झारखंड सरकार और जेएसएससी को नोटिस जारी किया है। अदालत ने दोनों पक्षों से जवाब तलब करते हुए यह स्पष्ट किया है कि इस मामले में पारदर्शिता और समानता के सिद्धांत का पालन अनिवार्य है। अदालत का कहना है कि यदि सूचना के प्रसारण में असमानता साबित होती है, तो यह योग्य उम्मीदवारों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।

नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता की जरूरत

यह मामला एक बार फिर सरकारी नियुक्ति प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता की जरूरत को उजागर करता है। कोर्ट की अगली सुनवाई में यह तय हो सकता है कि उन वंचित अभ्यर्थियों को किस तरह का राहत मिल सकती है। यदि याचिकाकर्ताओं के दावे सही पाए जाते हैं, तो राज्य सरकार और जेएसएससी को नियुक्ति प्रक्रिया में संशोधन करना पड़ सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का यह हस्तक्षेप यह सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है कि किसी भी योग्य अभ्यर्थी के साथ अन्याय न हो। आने वाले समय में इस मामले का फैसला न केवल संबंधित अभ्यर्थियों के भविष्य को प्रभावित करेगा, बल्कि भविष्य में होने वाली नियुक्तियों के मानकों और प्रक्रिया पर भी गहरा असर डालेगा।

 

 

 

 

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