Patna: Tejashwi Yadav: बिहार में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे राजनीतिक माहौल और गर्माता जा रहा है।
महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने एक बार फिर सत्तारूढ़ एनडीए पर तीखा हमला बोला है — इस बार निशाना है ‘रिश्तों की राजनीति’। उन्होंने आरोप लगाया है कि एनडीए नेता और शीर्ष अधिकारी अपने परिजनों को सत्ता का फायदा पहुंचा रहे हैं।
Tejashwi Yadav: अधिकारियों की पत्नी और नेताओं की बेटियों को लेकर सवाल
तेजस्वी यादव ने जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा पर निशाना साधते हुए कहा कि उनकी दोनों बेटियों को बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड नियुक्त किया है, जबकि यह पद आमतौर पर अनुभवी वकीलों को मिलता है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या यह नियुक्ति योग्यता के आधार पर हुई या राजनीतिक प्रभाव के चलते?
इसी तरह, उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रधान सचिव दीपक कुमार का भी नाम लिया और कहा कि उनकी पत्नी को महिला आयोग में सदस्य बना दिया गया है। तेजस्वी ने आरोप लगाया, “अब अधिकारी भी मलाई खा रहे हैं और पत्नियों को आयोगों में एडजस्ट करवा रहे हैं।”
Tejashwi Yadav: ‘परिवारवाद’ का पलटवार?
गौरतलब है कि एनडीए बार-बार लालू परिवार पर परिवारवाद का आरोप लगाता रहा है। बीजेपी और नीतीश कुमार ने 2024 में भी इस मुद्दे को जमकर उछाला था, जिसका फायदा उन्हें लोकसभा चुनावों में मिला। लेकिन अब तेजस्वी उसी ‘परिवारवाद’ के मुद्दे को पलटकर एनडीए के ही नेताओं पर लागू कर रहे हैं।
तेजस्वी का कहना है कि यह मुद्दा महज़ लालू परिवार तक सीमित नहीं है, बल्कि एनडीए की राजनीति में भी रिश्तेदारी का गहरा प्रभाव है। उन्होंने पूछा, “क्या नीतीश कुमार अब फैसले लेने में सक्षम नहीं हैं, या यह सब उनकी सहमति से हो रहा है?”
Tejashwi Yadav: बीजेपी का पलटवार: ध्यान भटकाने की कोशिश
बीजेपी ने तेजस्वी के आरोपों को खारिज करते हुए इसे “ध्यान भटकाने की कोशिश” बताया। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गुरु प्रकाश ने कहा, “तेजस्वी यादव जनता को असल मुद्दों से भटका रहे हैं। हाल ही में लालू यादव के जन्मदिन पर उनके समर्थकों ने बाबा साहेब अंबेडकर की तस्वीर का अपमान किया — यह पूरे दलित समाज का अपमान है। तेजस्वी अब इस मुद्दे से लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश कर रहे हैं।”
Tejashwi Yadav: क्या बदलेगा चुनावी पासा?
बिहार की राजनीति में ‘रिश्तेदारवाद’ हमेशा एक बड़ा मुद्दा रहा है, लेकिन तेजस्वी यादव का इसे नए सिरे से एनडीए के खिलाफ इस्तेमाल करना एक रणनीतिक चाल मानी जा रही है। अगर वे इस मुद्दे को जनता के बीच मज़बूती से ले जाने में सफल होते हैं, तो यह महागठबंधन को आगामी चुनाव में लाभ भी दिला सकता है।
लेकिन एनडीए के पास भी पलटवार के लिए मुद्दे हैं — विशेष रूप से दलित समुदाय को लेकर लालू परिवार के हालिया विवाद, जिसे बीजेपी बड़े आंदोलन का रूप देने की कोशिश में है।
बिहार चुनाव की पटकथा तेज होती जा रही है, और अब ‘रिश्तों की राजनीति’ बन चुकी है चुनावी बहस का नया केंद्र। अब देखना होगा कि तेजस्वी यादव की यह रणनीति कितनी कारगर साबित होती है और जनता किसे सियासी पासा पलटने का मौका देती है।