जदयू से अलग होने के बाद, पिछले डेढ़ दशक से Upendra Kushwaha बिहार की राजनीति में खुद को बतौर ‘फैक्टर’ स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।
शिक्षक से सियासी नेता बने उपेंद्र कुशवाहा का चेहरा राज्य की हर सत्ता समीकरण में नजर आता जरूर है, लेकिन वे लगातार स्थिर सफलता से दूर रहे हैं। उनकी सबसे बड़ी ताकत यही रही कि वे जब चाहें जदयू, एनडीए या महागठबंधन का रुख कर सकते हैं। लेकिन, चुनावी नतीजों की बात करें तो उनकी पार्टियों की ‘सिलेंडर’ धीरे-धीरे खाली होती नजर आई!
Upendra Kushwaha: बार-बार पार्टी का बनना-बिखरना, ठोस जनाधार नहीं
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2013: उपेंद्र कुशवाहा ने RLS (रालोसपा) बनाई और 2014 में एनडीए के सहयोगी बने।
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2014 के लोकसभा चुनाव: रालोसपा ने 3 में से 3 सीटें (शत-प्रतिशत) जीतकर शानदार शुरुआत की।
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2015 के बिहार विधानसभा चुनाव: एनडीए के साथ 23 सीटों पर चुनाव लड़े, सिर्फ 2 पर जीत मिली।
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2019: एनडीए से अलग होकर महागठबंधन में, 5 लोकसभा सीटों पर उतरे, शून्य सफलता।
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2020 विधानसभा: AIMIM-बसपा के साथ तीसरा मोर्चा बनाया, 107 सीटों पर उम्मीदवार लेकिन एक भी सीट नहीं।
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2021: रालोसपा का जदयू में विलय।
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2023: नई पार्टी—राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM)—की घोषणा, चुनाव चिन्ह ‘गैस सिलेंडर’।
Upendra Kushwaha: बार-बार गठबंधन, मगर नतीजे निराशाजनक
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उपेंद्र कुशवाहा के राजनीतिक सफर की सबसे बड़ी खासियत उनकी ‘फ्लेक्सिबिलिटी’ रही—कभी एनडीए तो कभी महागठबंधन, तो कभी तीसरा मोर्चा।
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परिणामस्वरूप, न तो कोई स्थाई कैडर तैयार हुआ, न ही कोई चुनावी जनाधार बन सका।
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उनकी पार्टियों को मत प्रतिशत लोस/विधानसभा चुनावों में 2% के आसपास ही रहा।
वर्ष | लड़ी सीटें | जीती | मत प्रतिशत |
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लोस 2014 (रालोसपा) | 3 | 3 | 2.1% |
लोस 2019 | 5 | 0 | 1.9% |
लोस 2024 (RLM) | 1 | 0 | 0.42% |
विधानसभा 2015 | 23 | 2 | 2.0% |
विधानसभा 2020 | 107 | 0 | 1.52% |
Upendra Kushwaha और RLM: सियासत में बचा कितना ‘गैस’?
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हालिया सच्चाई यह है कि राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) की संगठनात्मक ताकत सीमित है।
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कुशवाहा की सामाजिक स्वीकार्यता और राजनेताओं के बीच संवाद क्षमता भले जबरदस्त है, लेकिन खेत-खलिहान या सभाओं में उनकी पार्टी का दखल लगभग नाममात्र है।
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बार-बार पार्टी का नाम, चुनाव चिन्ह, गठबंधन बदलने और हार के चलते, समर्थक भ्रमित और कार्यकर्ता हतोत्साहित हो जाते हैं।
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2024 के लोकसभा चुनाव में भी RLM का प्रदर्शन औसत से भी नीचे रहा, मात्र 0.42% वोट।
‘सिंगल फाइटर’ की छवि, मगर संगठन और जनाधार कमजोर
उपेंद्र कुशवाहा बिहार सियासत के ‘फ्लेक्सीबल खिलाड़ी’ बने हैं—जहां संभावना, वहां प्रयोग। पर, असली सवाल यही है: क्या RLM के ‘सिलेंडर’ में अब वाकई इतनी ‘गैस’ बची है, जिससे बिहार की राजनीति में कोई धमाका संभव है?
जब तक पक्की सामाजिक जड़ें और स्थिर संगठन नहीं, तब तक उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति ‘लंबी रेस’ की सवारी कम, बल्कि ‘गैस सिलेंडर’ की चिंगारी की तरह जल्द ही खत्म हो सकती है।