बिहार के हाल ही में हुए उपचुनावों में एक ओर जहां सत्ताधारी गठबंधन एनडीए ने शानदार प्रदर्शन किया, वहीं Prashant Kishor की जन सुराज पार्टी के लिए यह चुनावी डेब्यू बेहद निराशाजनक रहा।
चार विधानसभा सीटों पर हुए इस उपचुनाव के नतीजे शनिवार को सामने आए, जिनमें जन सुराज पार्टी का प्रदर्शन बहुत ही कमजोर रहा। पार्टी का कोई भी उम्मीदवार न तो चुनाव जीत सका और न ही दूसरे नंबर पर आ सका।
Prashant Kishor News: चुनाव परिणाम और जन सुराज पार्टी की हार
बिहार के चार विधानसभा सीटों—बेलागंज, रामगढ़, इमामगंज (आरक्षित) और तरारी—पर उपचुनाव हुए थे, और चारों ही सीटों पर एनडीए को जीत मिली। इन सीटों पर कुल 38 प्रत्याशी मैदान में थे, जिनमें जन सुराज पार्टी के उम्मीदवारों का प्रदर्शन बहुत खराब रहा।
- बेलागंज में जन सुराज के उम्मीदवार मोहम्मद अमजद को केवल 17,285 वोट मिले।
- इमामगंज में जितेंद्र पासवान को 37,103 वोट मिले।
- रामगढ़ में सुशील कुमार सिंह को सिर्फ 6,513 वोट मिले।
- तरारी में किरण देवी को केवल 5,622 वोट मिले।
Prashant Kishor की रणनीति पर सवाल
प्रशांत किशोर ने बिहार के उपचुनाव में लोगों से जातिवाद और राशन पर वोटिंग से बचने की अपील की थी, लेकिन उनकी यह बात बिहार की जनता तक नहीं पहुंच पाई। उन्होंने कहा था कि बिहार को जातिवाद और राशन की राजनीति से बाहर निकालना उनका मुख्य उद्देश्य है। हालांकि, उनकी यह अपील जमीनी स्तर पर उतनी प्रभावी नहीं रही, जितनी उम्मीद थी।
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बिहार की कठिन सियासी पिच पर मुश्किलें
बिहार में पिछले तीन दशकों से आरजेडी और जेडीयू का दबदबा रहा है। आरजेडी ने राज्य में 15 सालों तक शासन किया और जेडीयू ने बीजेपी और आरजेडी दोनों के साथ सरकार बनाई। इन तीन पार्टियों का राज्य की राजनीति पर गहरा प्रभाव है, और ऐसे में नए दल के लिए इस सियासी पिच पर बैटिंग करना आसान नहीं होता। प्रशांत किशोर के लिए बिहार की राजनीति में कदम रखना चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है।
आने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी
प्रशांत किशोर ने घोषणा की है कि उनकी जन सुराज पार्टी बिहार की सभी 243 सीटों पर आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेगी। पिछले दो वर्षों में उन्होंने आरजेडी के कोर वोटबैंक माने जाने वाले मुस्लिम और यादव समुदाय को साधने की कोशिश की है। वे मुस्लिम समुदाय के 40 और महिलाओं और अति पिछड़ी जातियों (ईबीसी) के 70 उम्मीदवारों को टिकट देने की योजना बना रहे हैं।
आने वाली परीक्षा
इस उपचुनाव के परिणाम के बाद प्रशांत किशोर के लिए आगामी विधानसभा चुनाव की राह और भी कठिन हो गई है। उन्होंने कई राजनीतिक दलों के लिए चुनावी रणनीतियां बनाई हैं, लेकिन अब खुद को मैदान में उतारकर अपनी रणनीति को साबित करने की बारी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि वे अगले साल बिहार विधानसभा चुनाव में कितने सफल हो पाते हैं।