रांची: झारखंड में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने शुक्रवार सुबह एक बार फिर मनी लॉन्ड्रिंग के एक बड़े मामले में सख्त कार्रवाई की।
#प्रवर्तन_निदेशालय #झारखंड के #हजारीबाग और रांची में 8 स्थानों पर तलाशी अभियान चला रहा है। यह अभियान झारखंड के पूर्व मंत्री योगेन्द्र साओ और उनके सहयोगियों के खिलाफ धन शोधन मामले में चलाया जा रहा है। #ED #Jharkhand
— आकाशवाणी समाचार (@AIRNewsHindi) July 4, 2025
पूर्व कांग्रेस विधायक अंबा प्रसाद और उनके पिता पूर्व मंत्री योगेंद्र साव से जुड़े 8 से ज्यादा ठिकानों पर छापेमारी की गई। यह कार्रवाई कोयले और रेत के अवैध खनन से अर्जित आय की धनशोधन जांच के तहत की गई है।
तीन शहरों में एकसाथ चली छापेमारी की कार्रवाई
ईडी की टीमें रांची, हजारीबाग और बड़कागांव के विभिन्न इलाकों में तड़के पहुंचीं और एकसाथ कई ठिकानों की तलाशी शुरू कर दी।
इस कार्रवाई में आरकेटीसी ट्रांसपोर्टिंग कंपनी की भूमिका मुख्य रूप से संदिग्ध मानी जा रही है। ईडी को शक है कि इस कंपनी के माध्यम से कोयले की अवैध ढुलाई और खनन को अंजाम दिया गया।
पूर्व विधायक अंबा प्रसाद और उनके पिता योगेंद्र साव के ठिकानों पर रेड
ईडी ने कार्रवाई को अंबा प्रसाद के करीबी सहयोगियों तक भी फैलाया है।
छापेमारी बड़कागांव स्थित इनके निजी सहायक संजीव साव, मनोज दांगी, पंचम कुमार और मंटू सोनी के घरों पर भी की गई।
पूर्व मंत्री योगेंद्र साव के रांची, रामगढ़ और हजारीबाग स्थित ठिकानों पर भी तलाशी जारी है।
अवैध खनन, जबरन वसूली और मनी लॉन्ड्रिंग की कड़ी जांच
सूत्रों के मुताबिक, यह छापेमारी झारखंड में अवैध रेत खनन और वसूली से संबंधित मामलों की जांच के तहत की जा रही है। ईडी को इन गतिविधियों के जरिए काले धन को वैध बनाने (मनी लॉन्ड्रिंग) के सबूत मिले हैं।
आरकेटीसी ट्रांसपोर्टिंग कंपनी को इस पूरे नेटवर्क की रीढ़ के रूप में देखा जा रहा है।
पहले भी हो चुकी है पूछताछ, अब कार्रवाई तेज
इससे पहले ईडी ने अंबा प्रसाद की बेटी से पूछताछ की थी और कुछ दस्तावेज भी जब्त किए गए थे।
अब, कार्रवाई को व्यापक दायरे में बढ़ाया गया है और अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले दिनों में इस मामले में कई और बड़े नाम सामने आ सकते हैं।
राजनीतिक हलचल भी तेज, कांग्रेस की चुप्पी
ED की इस कार्रवाई के बाद झारखंड की राजनीति में हलचल मच गई है।
अभी तक कांग्रेस या अंबा प्रसाद की ओर से कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह छापेमारी आगामी विधानसभा चुनावों के पहले विपक्षी दलों पर दबाव बनाने की रणनीति भी हो सकती है।