Bihar Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव संपन्न होने के साथ ही भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने अब पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) की तैयारी शुरू कर दी है। यह एक राष्ट्रव्यापी कवायद है, जिसका मकसद मतदाता सूची को पूरी तरह त्रुटिरहित बनाना है। हालांकि, बंगाल में यह प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही राजनीतिक घमासान मच गया है।

3.5 करोड़ मतदाताओं का होगा डोर-टू-डोर सत्यापन
चुनाव आयोग (Bihar Chunav) के सूत्रों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में SIR कार्यक्रम नवंबर 2025 के मध्य तक शुरू होने की उम्मीद है। इस प्रक्रिया के तहत, बंगाल की वर्तमान मतदाता सूची (जनवरी 2025) का मिलान साल 2002 की मतदाता सूची से किया जाएगा। चौंकाने वाली बात यह है कि प्राथमिक जाँच में पाया गया है कि वर्तमान सूची के केवल 52% मतदाताओं का ही 2002 की सूची से मिलान हो पाया है।
इसका अर्थ है कि पश्चिम बंगाल में लगभग 3.5 करोड़ मतदाताओं का डोर-टू-डोर जाकर सत्यापन (Verification) किया जाएगा। यह अभियान मृत मतदाताओं के नाम हटाने, स्थायी रूप से स्थानांतरित हो चुके लोगों के नाम शुद्ध करने और एक से अधिक जगहों पर दर्ज नामों को हटाने के लिए चलाया जा रहा है।
TMC का आरोप: “BJP पिछले दरवाजे से NRC लागू कर रही”
पश्चिम बंगाल में इस विशेष अभियान को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने कड़ा विरोध दर्ज कराया है। TMC का आरोप है कि यह BJP द्वारा “पिछले दरवाजे से NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) लागू करने” की एक सोची-समझी साजिश है, जिसका उद्देश्य बंगालीभाषी और अल्पसंख्यक मतदाताओं को सूची से हटाना है।
पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने अपने सभी कार्यकर्ताओं को निर्देश जारी किए हैं कि वे BLOs (बूथ लेवल ऑफिसर) के साथ मिलकर काम करें ताकि “एक भी असली और योग्य वोटर” का नाम सूची से न कटने पाए। TMC ने चेतावनी दी है कि वे किसी भी सूरत में मतदाताओं के अधिकारों का हनन नहीं होने देंगे।
BJP का पलटवार: “TMC फर्जी वोटों से डर रही है”
वहीं, भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने TMC के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। BJP का कहना है कि TMC इस प्रक्रिया से इसलिए डर रही है क्योंकि इससे उन “फर्जी और मृत मतदाताओं” के नाम कट जाएँगे, जिनकी मदद से वे चुनाव में अनियमितताएं करते रहे हैं। BJP नेताओं ने कहा कि यह एक पारदर्शी प्रक्रिया है जो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी है।
बिहार में इसी तरह की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है, लेकिन पश्चिम बंगाल का यह अभियान कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यहाँ सत्यापन किए जाने वाले मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है। 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले यह मुद्दा राज्य की राजनीति में एक बड़ा भूचाल लाने वाला है।
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