नई दिल्ली, 25 जून 2025:
आज से ठीक 50 साल पहले, 25 जून 1975 को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक ऐसा दिन दर्ज हुआ, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल (Emergency) की घोषणा की थी, जो 21 महीनों तक यानी मार्च 1977 तक चला। यह वह समय था जब नागरिक स्वतंत्रताओं पर अंकुश लगाया गया, प्रेस की आज़ादी छीन ली गई और हजारों विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया।
क्यों लगाया गया था आपातकाल?
आपातकाल की घोषणा का मुख्य कारण बताया गया था – “आंतरिक अशांति”। लेकिन इसकी पृष्ठभूमि में इलाहाबाद हाईकोर्ट का वह ऐतिहासिक फैसला था, जिसमें इंदिरा गांधी के 1971 के लोकसभा चुनाव को अवैध करार दिया गया था। अदालत के इस फैसले के बाद उन पर पद छोड़ने का दबाव बढ़ा, जिसके जवाब में उन्होंने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल लागू करने की सलाह दी।
क्या हुआ आपातकाल के दौरान?
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मौलिक अधिकारों का निलंबन: नागरिकों के भाषण, अभिव्यक्ति और विरोध के अधिकार पर रोक लगा दी गई।
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प्रेस सेंसरशिप: अखबारों को सरकारी अनुमति के बिना खबरें छापने की इजाजत नहीं थी।
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राजनीतिक गिरफ्तारियां: जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मोरारजी देसाई जैसे कई प्रमुख विपक्षी नेता गिरफ्तार कर लिए गए।
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जबरन नसबंदी अभियान: संजय गांधी के नेतृत्व में चलाए गए परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत लाखों लोगों की जबरन नसबंदी कर दी गई।
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लोकतंत्र की जीत
मार्च 1977 में जब चुनाव कराए गए, तो इंदिरा गांधी और उनकी कांग्रेस पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। जनता पार्टी सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। यह भारत के लोकतंत्र की ताकत का प्रमाण था कि एक बार फिर जनता ने अपने अधिकारों को वापस पाया।
क्यों महत्वपूर्ण है याद रखना?
आपातकाल केवल एक राजनीतिक घटना नहीं थी, बल्कि यह एक चेतावनी थी कि लोकतंत्र की रक्षा केवल संविधान से नहीं, बल्कि नागरिकों की सजगता और जागरूकता से होती है। आज जब आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ है, यह अवसर है देश के युवाओं को यह समझाने का कि लोकतंत्र कितनी मेहनत से मिला अधिकार है और इसे बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयास जरूरी हैं।