Deoghar: झारखंड के देवघर जिले के मधुपुर अनुमंडल स्थित पथरोल काली मंदिर अपनी प्राचीनता, दिव्यता और चमत्कारी शक्ति के लिए पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध है। लगभग 500 साल पुराने इस मंदिर की स्थापना 16वीं सदी में तत्कालीन राजा दिग्विजय सिंह द्वारा की गई थी। मंदिर में विराजमान मां काली को जागृत स्वरूप माना जाता है, और भक्तों की मान्यता है कि यहां सच्चे मन से की गई प्रार्थना अवश्य पूरी होती है।
इतिहास से जुड़ी रोचक कथा
पथरोल काली मंदिर का इतिहास भी अत्यंत दिलचस्प है। कहा जाता है कि प्रारंभ में इस स्थान पर केवल वेदी की पूजा होती थी। एक दिन राजा दिग्विजय सिंह को स्वप्न में मां काली के दर्शन हुए, जिसमें मां ने उन्हें कोलकाता के प्रसिद्ध कालीघाट से अपनी प्रतिमा लाकर स्थापना करने का आदेश दिया। राजा ने मां के आदेश का पालन करते हुए डोली में प्रतिमा को लाकर विधिवत पूजा-अर्चना के बाद मंदिर में स्थापित किया। आज भी मंदिर की स्थापत्य कला और प्रतिमा की बनावट कालीघाट मंदिर से मेल खाती है।
श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र
यह मंदिर क्षेत्रवासियों के लिए ही नहीं, बल्कि दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी आस्था का बड़ा केंद्र बन चुका है। प्रतिदिन बड़ी संख्या में भक्त मां काली के दर्शन और पूजा के लिए यहां पहुंचते हैं। विशेष रूप से दीपावली और नवरात्रि के अवसर पर मंदिर परिसर में भारी भीड़ उमड़ती है, और विशेष पूजा अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है।
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आस्था और संस्कृति का संगम
पथरोल काली मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह झारखंड की सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक है। यहां की धार्मिक गतिविधियां और मेलों के माध्यम से स्थानीय संस्कृति और परंपराएं आज भी जीवित हैं।
इस तरह पथरोल काली मंदिर न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह इतिहास, संस्कृति और आस्था का जीता-जागता प्रतीक भी है।
शुभम सिंह की रिपोर्ट