Sunday, June 8, 2025
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अगर कानून सुप्रीम कोर्ट ही बनाएगा तो संसद बंद कर दी जाए: Nishikant Dubey

रांची/नई दिल्ली। बीजेपी के वरिष्ठ सांसद और गोड्डा से लोकसभा सदस्य Nishikant Dubey ने सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर सवाल उठाते हुए एक विवादास्पद बयान दिया है।

उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “क़ानून यदि सुप्रीम कोर्ट ही बनाएगा तो संसद भवन बंद कर देना चाहिये।” यह बयान वक्फ संशोधन कानून और पॉकेट वीटो से जुड़े मामलों में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका पर प्रतिक्रिया स्वरूप सामने आया है।

Nishikant Dubey News: न्यायपालिका बनाम विधायिका: बढ़ती तनातनी

निशिकांत दुबे का यह बयान उस समय आया है जब सुप्रीम कोर्ट वक्फ अधिनियम में हुए संशोधनों की संवैधानिकता की जांच कर रहा है। सांसद का यह कहना है कि जब विधायी कार्य संसद का अधिकार क्षेत्र है, तब न्यायपालिका को उसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

इससे पहले भी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने ऐसे ही सुर में बातें कही थीं। रिजिजू ने स्पष्ट कहा था कि “सुप्रीम कोर्ट को विधायी मामलों में दखल नहीं देना चाहिए और संविधान में शक्तियों का जो विभाजन है, उसका सम्मान किया जाना चाहिए।”

Nishikant Dubey News: लोकतंत्र में संस्थाओं की मर्यादा और सीमाएं

दुबे के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कई विशेषज्ञों और नागरिकों ने कहा कि भारत का संविधान न्यायपालिका को यह अधिकार देता है कि वह संविधान की रक्षा करे और अगर कोई कानून संविधान विरोधी है तो उसे रद्द कर सके। इस प्रक्रिया को ‘न्यायिक समीक्षा’ (Judicial Review) कहा जाता है, जो भारतीय लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा है।

संविधान विशेषज्ञों के अनुसार, “कोई भी संस्था निरंकुश नहीं हो सकती। संसद को कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन वो अधिकार असीमित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का दायित्व है कि वह संविधान के अनुरूप हर कानून की समीक्षा करे। यह शक्तियों के पृथक्करण का मूल सिद्धांत है।”

राजनीतिक माहौल में गर्माहट

दुबे का यह बयान चुनावी मौसम और संवेदनशील मामलों पर अदालत की सक्रियता के बीच आया है, जिससे राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है। जहां एक ओर भाजपा के कुछ नेता न्यायपालिका को ‘सीमाएं’ याद दिला रहे हैं, वहीं विपक्ष और संविधान विशेषज्ञ इसे लोकतांत्रिक चेतना के खिलाफ बता रहे हैं।

वही भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष JP Nadda ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स  पर लिखा की भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा का न्यायपालिका एवं देश के चीफ जस्टिस पर दिए गए बयान से भारतीय जनता पार्टी का कोई लेना–देना नहीं है। यह इनका व्यक्तिगत बयान है, लेकिन भाजपा ऐसे बयानों से न तो कोई इत्तेफाक रखती है और न ही कभी भी ऐसे बयानों का समर्थन करती है। भाजपा इन बयान को सिरे से खारिज करती है। भारतीय जनता पार्टी ने सदैव ही न्यायपालिका का सम्मान किया है, उनके आदेशों और सुझावों को सहर्ष स्वीकार किया है क्योंकि एक पार्टी के नाते हमारा मानना है कि सर्वोच्च न्यायालय सहित देश की सभी अदालतें हमारे लोकतंत्र का अभिन्न अंग हैं तथा संविधान के संरक्षण का मजबूत आधारस्तंभ हैं। मैंने इन दोनों को और सभी को ऐसे बयान ना देने के लिए निर्देशित किया है।

 आगे की राह

वक्फ अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय क्या होगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन इस बहस ने एक बार फिर यह मुद्दा सामने ला दिया है कि भारत जैसे लोकतंत्र में शक्तियों का संतुलन बनाए रखने के लिए संवाद और परस्पर सम्मान कितना जरूरी है।

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