Friday, June 13, 2025
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Lalu Yadav की छवि से कांग्रेस को असहजता, गठबंधन टूटा, अकेले उतरी कांग्रेस

Lalu Yadav: बिहार की राजनीति हमेशा से बदलावों और उलटफेरों के लिए जानी जाती रही है। एक बार फिर ऐसा ही नज़ारा देखने को मिला जब कांग्रेस पार्टी ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से नाता तोड़कर अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया।

यह फैसला अचानक नहीं था, बल्कि इसके पीछे कई कारण छिपे हैं, जिनमें सबसे अहम कारण था – लालू प्रसाद यादव की दागी छवि।

Lalu Yadav की छवि बनी परेशानी का कारण

लालू यादव, जो कभी सामाजिक न्याय की राजनीति के पुरोधा माने जाते थे, अब भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी ठहराए जा चुके हैं। उन पर लगे चारा घोटाले जैसे गंभीर आरोपों के कारण कांग्रेस की छवि पर भी असर पड़ रहा था। खासकर युवा मतदाताओं और शहरी वोट बैंक में पार्टी की साख को नुकसान हो रहा था। कांग्रेस नेतृत्व को लगने लगा कि अगर पार्टी को अपनी खोई हुई जमीन वापस पानी है, तो उसे ऐसे नेताओं से दूरी बनानी होगी जिनकी छवि विवादित हो।

Lalu Yadav News: गठबंधन टूटने का असर

गठबंधन के टूटने का सीधा असर चुनावी समीकरणों पर पड़ा। राजद और कांग्रेस, दोनों की रणनीतियाँ बदलीं। जहां राजद ने अन्य छोटे दलों को साथ लेकर मैदान में उतरने की कोशिश की, वहीं कांग्रेस ने स्वतंत्र रूप से अपनी ताकत आजमाने का फैसला किया। हालांकि यह जोखिम भरा कदम था, लेकिन कांग्रेस के लिए यह ‘छवि सुधार’ की दिशा में एक बड़ा प्रयास भी था।

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अकेले लड़ने का मिला मिला-जुला परिणाम

चुनाव परिणामों ने दिखाया कि कांग्रेस का अकेले लड़ना कोई मास्टरस्ट्रोक साबित नहीं हुआ, लेकिन यह पार्टी के लिए आत्ममंथन का एक मौका जरूर बना। कुछ क्षेत्रों में उसे बढ़त मिली, वहीं कई जगह वह पिछड़ गई। इससे यह स्पष्ट हुआ कि बिहार की राजनीति में बिना मजबूत ज़मीनी संगठन के अकेले चलना मुश्किल है, लेकिन साथ ही यह भी साफ हो गया कि कांग्रेस अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश में है।

नई राह की तलाश

कांग्रेस का राजद से दूरी बनाना केवल चुनावी रणनीति नहीं, बल्कि दीर्घकालीन छवि निर्माण की दिशा में एक सोच-समझा कदम है। बिहार जैसे राज्य में जहां जातीय समीकरण और स्थानीय नेतृत्व की भूमिका अहम होती है, वहां पार्टी के लिए यह जरूरी हो गया था कि वह अपने निर्णयों के लिए जवाबदेह बने और दागदार छवियों से खुद को अलग करे।

आने वाले चुनावों में यह देखने लायक होगा कि कांग्रेस अपनी इस रणनीति से कितना फायदा उठा पाती है, लेकिन फिलहाल इतना तय है कि बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट ले चुकी है।

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