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Sarna धर्म कोड मामले में सियासी घमासान, कांग्रेस ने भाजपा पर साधा निशाना

On: May 21, 2025 12:05 AM
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Sarna
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झारखंड में आदिवासियों की धार्मिक पहचान को लेकर Sarna धर्म कोड का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। इस बार कांग्रेस ने खुलकर भाजपा पर निशाना साधा है।

कांग्रेस प्रवक्ता सोनाल शांति ने आरोप लगाया कि भाजपा आदिवासियों को भ्रमित कर रही है और उनकी धार्मिक अस्मिता को नजरअंदाज कर रही है।

Sarna Code: भाजपा की मंशा पर उठाए सवाल

सोनाल शांति ने कहा कि भाजपा सरना धर्म कोड के मुद्दे पर लगातार टालमटोल की राजनीति कर रही है। उन्होंने सवाल किया कि अगर भाजपा वाकई में आदिवासियों की हितैषी है, तो वह सरना धर्म कोड को कानूनी मान्यता दिलाने के लिए स्पष्ट रुख क्यों नहीं अपनाती? उन्होंने कहा कि यह केवल वोट बैंक की राजनीति है, जिसमें भाजपा आदिवासियों की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ कर रही है।

Sarna Code: इतिहास की याद दिलाई

कांग्रेस प्रवक्ता ने रघुवर दास सरकार के कार्यकाल की याद दिलाते हुए कहा कि उस समय भी आदिवासी संगठनों ने सरना धर्म कोड की मांग की थी। लेकिन भाजपा सरकार ने इस पर कोई गंभीरता नहीं दिखाई। उन्होंने कहा कि भाजपा ने केवल चुनाव के समय आदिवासियों को आश्वासन दिए, पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

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Sarna Code: कांग्रेस का पक्ष

कांग्रेस ने स्पष्ट किया है कि वह हमेशा से आदिवासियों की धार्मिक पहचान की पक्षधर रही है। झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को सरना धर्म कोड की मान्यता देने की सिफारिश भी भेजी थी। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह आदिवासी समाज के आत्म-सम्मान का मुद्दा है, और इसे किसी भी सूरत में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

Sarna Code: राजनीतिक संदेश और भविष्य की रणनीति

इस बयान के जरिए कांग्रेस ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह आदिवासियों के साथ खड़ी है और उनकी धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। वहीं भाजपा पर दबाव बनाने की रणनीति भी अपनाई गई है, ताकि वह अपने रुख को साफ करे और आदिवासियों को धोखे में न रखे।सरना धर्म कोड का मुद्दा केवल धार्मिक पहचान का नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और सांस्कृतिक अस्तित्व से भी जुड़ा है।

इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों को वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर ईमानदारी से काम करना चाहिए। आदिवासी समाज का सम्मान तभी सुनिश्चित हो सकता है जब उनके धर्म और परंपराओं को संवैधानिक मान्यता मिले और उनकी आवाज़ को नज़रअंदाज़ न किया जाए।

 

 

 

 

 

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