29 जून को देशभर में ‘हूल दिवस’ मनाया जा रहा है, जो संथाल हूल विद्रोह के महान योद्धाओं सिद्धू-कान्हू, चांद और भैरव के अदम्य साहस और बलिदान की स्मृति में मनाया जाता है। यह दिवस ब्रिटिश शासन के खिलाफ आदिवासी समाज के पहले संगठित जनविद्रोह की ऐतिहासिक गाथा को याद करने का दिन है।
1855 में हुए संथाल विद्रोह को “हूल क्रांति” के नाम से जाना जाता है, जिसमें हजारों आदिवासियों ने ब्रिटिश हुकूमत और ज़मींदारी शोषण के खिलाफ विद्रोह किया था। सिद्धू और कान्हू मुर्मू के नेतृत्व में यह विद्रोह झारखंड, बिहार, बंगाल और ओड़िशा तक फैल गया था।
‘हूल’ शब्द का अर्थ होता है – विद्रोह। इस दिन को आदिवासी समुदाय अपने गौरवशाली इतिहास और सांस्कृतिक अस्मिता की पहचान के रूप में मनाते हैं। सरकारी और सामाजिक स्तर पर कई जगहों पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम, परिचर्चाएं, और लोक सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ आयोजित की जाती हैं।
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आज का दिन सिर्फ इतिहास याद करने का नहीं, बल्कि आदिवासियों के अधिकारों, संस्कृति और संघर्ष को समझने का भी दिन है। हूल दिवस हमें यह सिखाता है कि स्वतंत्रता केवल एक राजनीतिक उद्देश्य नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की भी मांग है।