Sunday, June 8, 2025
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‘सुपर संसद’ बयान पर Kapil Sibal का पलटवार, उपराष्ट्रपति को दी संवैधानिक मर्यादा की नसीहत

नई दिल्ली: राज्यसभा सांसद Kapil Sibal ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के उस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को ‘सुपर संसद’ के रूप में काम नहीं करना चाहिए।

सिब्बल ने इस बयान को संविधान की भावना के खिलाफ बताया और उपराष्ट्रपति को अपनी भूमिका की निष्पक्षता बनाए रखने की सलाह दी।

विधायिका में हस्तक्षेप पर Kapil Sibal का सवाल

कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर कोई राज्यपाल किसी विधेयक को वर्षों तक रोके रखता है, तो यह सीधे तौर पर विधायिका के अधिकारों में हस्तक्षेप है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर कोई मंत्री जनता के मुद्दे उठाने के लिए राज्यपाल से दो साल तक संपर्क करता है, फिर भी कोई कार्यवाही नहीं होती, तो यह कैसे जायज ठहराया जा सकता है?

उन्होंने पूछा, “अगर संसद कोई कानून पारित करती है और राष्ट्रपति उस पर हस्ताक्षर नहीं करते या उसे लंबित रखते हैं, तो क्या यह विधायिका की संप्रभुता पर चोट नहीं है?”

‘सुपर संसद’ की टिप्पणी पर सख्त ऐतराज: Kapil Sibal

सिब्बल ने उपराष्ट्रपति की उस टिप्पणी को भी खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट कानून बनाने का काम नहीं कर सकता। सिब्बल ने स्पष्ट किया कि अदालतें केवल संविधान की व्याख्या करती हैं और न्याय सुनिश्चित करने के लिए आदेश देती हैं। उन्होंने कहा कि संविधान ने न्यायपालिका को अपनी भूमिका निभाने के लिए विशेष शक्तियाँ दी हैं।

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अनुच्छेद 142 और 145 पर बहस

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कार्यक्रम में अनुच्छेद 142 को “लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल” कहा था। उन्होंने यह भी कहा कि अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश नहीं दे सकतीं, क्योंकि उनके पास सिर्फ संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है, वह भी संविधान पीठ द्वारा।

इस पर सिब्बल ने कहा कि संविधान ने सुप्रीम कोर्ट को “पूर्ण न्याय” सुनिश्चित करने की शक्ति दी है। उनका कहना था कि जब विधायिका और कार्यपालिका निष्क्रिय हो जाती है या न्याय से वंचित करती है, तब अदालतें हस्तक्षेप करती हैं, और यह संविधान सम्मत है।

संसद के अध्यक्षों की भूमिका पर टिप्पणी

सिब्बल ने दोनों सदनों के अध्यक्षों को सलाह देते हुए कहा कि उन्हें किसी राजनीतिक दल के प्रवक्ता की तरह काम नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा, “लोकसभा और राज्यसभा अध्यक्ष की कुर्सी सदन के बीच में इसलिए होती है ताकि वे निष्पक्ष रह सकें। वे किसी एक पार्टी के नहीं, पूरे सदन के अध्यक्ष होते हैं।”

 

 

 

 

 

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