Hazaribagh: झारखंड के हजारीबाग जिले में स्थित एक छोटे से गांव जमुनियातरी में इन दिनों जश्न का माहौल है। वजह है—बिरहोर समुदाय की दो बेटियों किरण कुमारी और चानवा कुमारी की असाधारण उपलब्धि। दोनों ने मैट्रिक परीक्षा में प्रथम श्रेणी से सफलता प्राप्त कर न केवल अपने गांव और समुदाय का नाम रोशन किया, बल्कि पूरे राज्य के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गई हैं।
इतिहास की नई इबारत
बिरहोर समुदाय झारखंड की एक विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) है, जो वर्षों से सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा रहा है। लेकिन इस वर्ष झारखंड एकेडमिक काउंसिल द्वारा जारी मैट्रिक परीक्षा के परिणामों में इस समुदाय की दो बेटियों ने इतिहास रच दिया।
चौपारण प्रखंड के वन क्षेत्र में बसे जमुनियातरी गांव की किरण कुमारी (पिता – रोहन बिरहोर) ने 409 अंक (लगभग 80%) और चानवा कुमारी (पिता – विष्णु बिरहोर) ने 332 अंक (लगभग 66%) प्राप्त कर प्रथम श्रेणी में परीक्षा उत्तीर्ण की है। यह बिरहोर समुदाय की किसी भी लड़की द्वारा मैट्रिक पास करने की पहली घटना है।
कस्तूरबा विद्यालय बना उम्मीद की किरण
दोनों छात्राएं कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय, चौपारण में पढ़ाई कर रही थीं। यह विद्यालय इनके लिए केवल शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि परिवर्तन की प्रयोगशाला बना। विद्यालय के शिक्षकों और अधीक्षिकाओं के मार्गदर्शन ने किरण और चानवा के सपनों को आकार देने का कार्य किया।
प्रशासन ने दी बधाई
इस उल्लेखनीय सफलता पर हजारीबाग के उपायुक्त श्री शशि प्रकाश सिंह ने दोनों छात्राओं को बधाई दी। उन्होंने कहा, “किरण और चानवा ने न केवल अपने माता-पिता और गांव का नाम रोशन किया है, बल्कि पूरे बिरहोर समुदाय और झारखंड को भी गौरवान्वित किया है। ये दोनों बच्चियां अब अपने समाज में बदलाव की अग्रदूत बनेंगी।”
बिरहोर जनजाति: संघर्ष से बदलाव तक
बिरहोर जनजाति पारंपरिक रूप से घुमंतू और शिकार पर निर्भर जीवन शैली के लिए जानी जाती रही है। हालांकि हाल के वर्षों में राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन की विभिन्न योजनाओं और प्रयासों के चलते इस समुदाय में महत्वपूर्ण सामाजिक और शैक्षणिक बदलाव आए हैं। अब इनमें से कई परिवार स्थायी निवास में रहकर शिक्षा और अन्य आधुनिक सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं।
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प्रेरणा की नई मिसाल
किरण और चानवा की यह सफलता सिर्फ एक परीक्षा पास करने की कहानी नहीं, बल्कि यह एक सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत है। ये दोनों बच्चियां अब पूरे राज्य के लिए प्रेरणा बन गई हैं—खासकर उन समुदायों के लिए जो आज भी सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं। इनके संघर्ष और सफलता की कहानी आने वाली पीढ़ियों को आगे बढ़ने और सपने देखने की हिम्मत देगी।