Dhanbad: धनबाद जिले के निरसा प्रखंड अंतर्गत पांडरा गांव में दो दिवसीय बाबा धर्मराज पूजा का आयोजन पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ किया गया। मंगलवार को पूजा का समापन भव्य तरीके से हुआ। इस दौरान क्षेत्र भर से श्रद्धालु बड़ी संख्या में शामिल हुए और बाबा धर्मराज के दर्शन कर आशीर्वाद लिया।
सोमवार की संध्या चार बजे पूजा का शुभारंभ हुआ, जो मंगलवार को तेज धूप और भीषण गर्मी के बावजूद निर्जला व्रत रखे सैकड़ों भक्तों की उपस्थिति में संपन्न हुआ। भक्त पहले पांडरा गांव स्थित सायेर तालाब पहुंचे, जहां विधिवत रूप से पूजा-अर्चना के बाद बाबा धर्मराज की शिला मूर्ति को धीवर समुदाय के एक सदस्य के माथे पर चढ़ाया गया।
मूर्ति को मंदिर तक ले जाने की प्रक्रिया में श्रद्धालु भक्त झूमते और जयकारा लगाते हुए शामिल हुए। इस दौरान भक्त पानी की बौछार से धीवर को स्नान कराते रहे ताकि वे गर्मी से राहत पा सकें। जैसे ही मंदिर के निकट धीवर पहुंचे, श्रद्धालु महिलाएं सड़क पर लेट गईं। मान्यता है कि बाबा की शिला मूर्ति को लेकर धीवर जिनके ऊपर से गुजरते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पूजा में श्रद्धालु विशेष रूप से आठ कमल के फूल और दो मिट्टी से बने घोड़े अर्पित करते हैं। इस परंपरा के पीछे गहरी धार्मिक आस्था जुड़ी हुई है।
बाबा धर्मराज मंदिर के पुजारी जयदेव बनर्जी ने जानकारी दी कि यह परंपरा पांडरा राज स्टेट के समय से चली आ रही है। पूजा की शुरुआत राजा श्याम सुंदर ने की थी और उनके समय मुख्य पुरोहित स्वर्गीय टगर चटर्जी थे। बाद में यह जिम्मेदारी स्वर्गीय पोलू चटर्जी और अब वर्तमान में जयदेव बनर्जी द्वारा निभाई जा रही है।
शिला मूर्ति को डूमरकुंडा गांव से लाया गया था, जिसमें राय, मजूमदार और नापित समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका रही। बाद में पांडरा गांव में राजा द्वारा मंदिर का निर्माण कर मूर्ति की स्थापना की गई। तभी से आज तक यह पूजा बड़े विधि-विधान से आयोजित की जाती है।
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इस पूजा में धीवर समुदाय की विशेष भूमिका रहती है। पूर्व में स्वर्गीय गौर धीवर, फिर स्वर्गीय अनिल धीवर और अब वर्तमान में बलाई धीवर यह जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
बाबा धर्मराज की यह पूजा पांडरा गांव की पहचान बन चुकी है, जिसमें श्रद्धा, परंपरा और सामाजिक समरसता की झलक देखने को मिलती है।