Jharkhand में पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) की नियुक्ति को लेकर सियासत गरमा गई है। सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आमने-सामने आ गए हैं।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने जहां डीजीपी के पद को लेकर सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं, वहीं झामुमो प्रवक्ता विनोद पांडेय ने तीखा पलटवार किया है।
Jharkhand News: मरांडी का हमला: “झारखंड बना पहला राज्य जहां 10 दिन से डीजीपी का पद खाली”
बाबूलाल मरांडी ने कहा कि झारखंड देश का पहला राज्य बन गया है जहां पिछले 10 दिनों से डीजीपी का पद खाली है। उन्होंने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “जो डीजीपी का काम कर रहा है, वह बिना वेतन सेवा दे रहा है। वाह मुख्यमंत्री जी, यह तो नया भारत निर्माण है – बिना वेतन, बिना संवैधानिक वैधता, सिर्फ भ्रष्टाचार के दम पर प्रशासन।”
मरांडी ने यह भी आरोप लगाया कि झारखंड सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 312 और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना की है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि “हेमंत सोरेन शायद खुद को सुप्रीम कोर्ट से ऊपर समझने लगे हैं।”
Jharkhand News: विनोद पांडेय का पलटवार: “प्रासंगिकता बचाने की कोशिश कर रहे हैं मरांडी”
भाजपा नेता के आरोपों पर झामुमो के प्रवक्ता विनोद पांडेय ने करारा जवाब दिया। उन्होंने कहा, “बाबूलाल मरांडी अब झारखंड की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए सरकार पर बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं।”
पांडेय ने कहा कि जिस प्रशासनिक अव्यवस्था की बात मरांडी कर रहे हैं, उसकी जड़ें उन्हीं के शासनकाल में पड़ी थीं। “अगर उनके पास कोई ठोस प्रमाण हैं, तो सामने लाएं। अन्यथा झूठ फैलाकर जनता को गुमराह करना बंद करें,” उन्होंने कहा।
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राजनीतिक बयानबाजी तेज, आरोपों का सिलसिला जारी
मरांडी ने प्रशासन पर भ्रष्टाचार को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि “झारखंड वहां पहुंच चुका है जहां JPSC की हर कुर्सी बिक रही है, और UPSC से चयनित अधिकारियों को भी सुविधा शुल्क चुकाना पड़ता है।”
वहीं, पांडेय ने पलटवार करते हुए पूछा कि मरांडी खुद बताएं कि उनके शासनकाल में कितनी बार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना हुई थी।
राज्य में गहराया डीजीपी विवाद, समाधान की उम्मीद नहीं
झारखंड में डीजीपी पद की रिक्तता अब केवल प्रशासनिक मुद्दा नहीं रह गया है, बल्कि राजनीतिक युद्धभूमि बन चुकी है। एक ओर जहां भाजपा इसे कानून-व्यवस्था से जोड़कर सरकार को कठघरे में खड़ा कर रही है, वहीं झामुमो इसे विपक्ष की राजनीतिक हताशा करार दे रहा है।
जनता इस बयानबाजी के बीच यह जानना चाहती है कि राज्य के सबसे अहम सुरक्षा पद पर नियुक्ति कब होगी और यह विवाद किस दिशा में जाएगा।